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राजनीतिक ईच्छा शक्ति के अभाव में दौड़ में पिछड़ी सीतामाता सेंचुरी, राम लला की स्थापना के साथ मिले सौगात, विकास और तीर्थाटन को लेकर जारी हो अलग से बजट
(अखिल तिवारी/ रोहित रेगर)
सीधा सवाल। चित्तौड़गढ़। अयोध्या में 500 साल से ज्यादा के इंतजार के बाद आगामी 22 नवंबर को ऐतिहासिक पल आने वाला है। श्रीराम जन्मभूमि पर भगवान श्रीराम लला बिराजमान होंगे। इसे लेकर पूरी विश्व की नजर सनातन धर्म एवं भारत पर है। भगवान श्रीराम के जीवन से जुड़े ऐतिहासिक स्थल एक बार फिर से सुर्खियों में आ रहे हैं। वहां के विकास और संरक्षण की बातें भी हो रही है। ऐसा ही एक स्थल चित्तौड़गढ़ और प्रतापगढ़ जिले में स्थित है, जिसे वर्तमान में सीतामता सेंचुरी के नाम से जाना जाता है। यहां कई वन्य जीव के अलावा वनस्पतियां, ओषधीय पौधे मौजूद है। ऐसे में देश-विदेश से लोग इस सेंचुरी को घूमने आते है। लेकिन एक और बड़ा कारण है कि यह सेंचुरी सनातन धर्मावलंबियों के लिए आस्था का केंद्र भी हैं। रामायण के प्रसंग और किदवंतियों के अनुसार सीतामाता ने इसी स्थान पर वनवास काटा था और लव-कुश के जन्म के साथ ही कई घटनाओं की साक्षी यहां की माटी रही है। इन सभी के प्रमाण भी मौजूद है। इन सभी के बावजूद आजादी के इतने सालों बाद भी यह स्थल पूरी तरह से विकसित नहीं हुआ है। इसे राज्य सरकार ने वर्ष 1979 में संरक्षित वन क्षेत्र के रूप में घोषित कर दिया था। लेकिन राष्ट्रीय अभ्यारण का दर्जा तो नहीं मिला लेकिन जिस प्रकार के ऐतिहासिक साक्ष्य है उसके अनुसार भी तीर्थ स्थल के रूप में इसका विकास नहीं हो पाया। अब जब अयोध्या में ऐतिहासिक पल आने वाला है और भगवान श्रीराम लला बिराजमान होंगे तो ऐसे में माता सीता से जुड़े इस स्थल को भी संरक्षित करने की मांग भी जोर पकड़ने लगी है। वन्य जीव प्रेमियों के अलावा सनातन धर्म को मानने वालों की ईच्छा है कि इस स्थान का समुचित विकास हो। अब फिर से लोगों के मन में इस बात को लेकर आस जगी है कि सीतामाता सेंचुरी को राष्ट्रीय अभ्यारण का दर्जा मिले।
कई बार भेजे प्रस्ताव, नहीं मिली स्वीकृति
जानकारी में सामने आया कि सीतामाता सेंचुरी को राष्ट्रीय अभ्यारण का दर्जा देने को लेकर पूर्व में भी कई बार प्रस्ताव भेजे जा चुके हैं। लेकिन इस प्रस्ताव को आज तक स्वीकृति नहीं मिल पाई है। राष्ट्रीय अभ्यारण का दर्जा मिलता है तो यहां सेंचुरी क्षेत्र में स्थित वनस्पति के साथ ही वन्य जीवों का भी संरक्षण अच्छे से हो पाएगा।
संभवतया यहां आ रही है रुकावट
जानकार सूत्रों की मानें तो राजनीतिक इच्छा शक्ति की कमी और वोट बैंक की राजनीति के कारण राष्ट्रीय अभ्यारण का दर्जा नहीं मिल पाया है। यहां सेंचुरी क्षेत्र में कई लोग बस गए है। ऐसे में इन्हें यहां से हटा पाना संभव नहीं है। आबादी बढ़ने के साथ ही कब्जे भी बढ़ने लगे हैं। इससे वन संपदा को नुकसान पहुंच रहा है।
आधा किलोमीटर तक पहाड़ फटने का स्थल
जानकारी में सामने आया कि अभ्यारण क्षेत्र में सीता माता का मंदिर है। यहां तक पहुंचाने के लिए दमदमा गेट से हनुमान मंदिर तक वहां से पहुंचा जा सकता है। यहां से आधा किलोमीटर का रास्ता पत्थरों वाला है। चट्टानों के बीच में सीता माता का मंदिर है। सीता माता के धरती में समाने के दौरान धरती फटने की स्थिति आज भी सीता माता अभ्यारण में देखने को मिलती है। करीब आधा किलोमीटर दूर तक पहाड़ फटा हुआ दिखता है। यहां पर वाल्मीकि आश्रम, हनुमान मंदिर, 12 बीघा का बरगद आदि स्थान है जो माता सीता तथा रामायण से जुड़े हुए हैं।
धार्मिक आस्था का केंद्र, लगता है मेला
जानकारी में सामने आया कि सीता माता सेंचुरी में स्थित है सीता माता का मंदिर धार्मिक आस्था का केंद्र है और वर्ष में एक बार मेला भी भरता है। किदवंती है कि 14 वर्ष के वनवास से लौटने के बाद एक बार फिर सीता माता को अयोध्या छोड़ कर वनवास जाना पड़ा था। इस दौरान महर्षि वाल्मीकि के आश्रम में रहने आई थी। वह आश्रम भी सीता माता अभ्यारण में स्थित बताया जाता रहा है। इसके बाद भगवान राम ने अश्वमेध यज्ञ के लिए घोड़ा छोड़ा था उसे लेने हनुमानजी आए थे तो उन्हें भी पेड़ के बांधने की कथा रामायण में बताई गई है। हनुमानजी को जिस पेड़ से बांध था वह स्थान भी अभ्यारण में बताया जाता है। यहां पर बॉर्ड लगा कर भी जानकारी दे रखी है।
उड़न गिलहरी के लिए प्रसिद्ध है सीतमाता सेंचुरी
सीतामाता सेंचुरी का सबसे महत्वपूर्ण और विशिष्ट जीव उड़न गिलहरी है। इसे रात के दौरान पेड़ों के बीच उड़ते (छलांग) लगाए हुए आसानी से देखा जा सकता है। यह एकमात्र ऐसा जंगल है, जहां सागवान के बहुमूल्य पेड़ पाए जाते हैं। घने वनस्पति वाली इस सेंचुरी में करीब 50 फीसदी सागवान के पेड़ हैं। यही नहीं यहां सालर, तेंदू, आंवला, बांस और बेल आदि के पेड़ भी हैं। इस सेंचुरी से होकर तीन नदियां भी बहती हैं। इनमें जाखम और करमोई नदी प्रमुख है। सीतामाता सेंचुरी में पैंथर, लकड़बग्घा, सियार, लोमड़ी, बिल्ली, साही, हिरण, जंगली भालू, चार सींग वाले मृग और नीलगाय आदि प्रमुख वन्य जीव भी रहते हैं।