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बोर्ड परीक्षाओं से ज्यादा बेहतर परिवहन विभाग का रिजल्ट - ऑटोमेटिक ड्राइविंग ट्रेक पर परीक्षण - हर साल बढ़ रहे हैं दुर्घटनाओं के मामले
सीधा सवाल। चित्तौड़गढ़। जिंदगी की रेस सबसे महत्वपूर्ण है। लेकिन इसे लेकर परिवहन विभाग की लापरवाही या यूं कहे कि सिस्टम में रहने वाली खामी का दुरुपयोग कि आम लोगों के जीवन से परिवहन विभाग की खिलवाड़ कर रहा है। किसी भी व्यक्ति को लाइसेंस बनाने से पहले ऑटोमेटिक ड्राइविंग ट्रेक पर टेस्ट देना होता है। इस टेस्ट का परिणाम गले नहीं उतर रहा है। तुलना करें तो बोर्ड परीक्षाओं से ज्यादा कठिन ड्राइविंग टेस्ट है लेकिन इसके परिणाम में परिवहन विभाग आगे है। ड्राइविंग टेस्ट देने वाले 95 प्रतिशत से ज्यादा लोग पास हो रहे हैं, लेकिन धरातल देखें तो यह हर किसी के गले नहीं उतर रहा है। यही कारण है कि जिले में सड़क पर वाहन चालकों की लापरवाही से सड़क हादसों में बढ़ोतरी हुई है। वहीं यह भी जांच का विषय है कि इतने लोग ड्राइविंग टेस्ट कैसे पास कर सकते हैं।
जानकारी में सामने आया कि चित्तौड़गढ़ जिले में हर वर्ष प्रमुख मार्गों पर बड़ी संख्या में हादसे होते हैं। इन हादसों में कई लोगों की जान जाती है। हादसे के कई कारण सामने निकल कर आते हैं। लेकिन यातायात नियमों के अभाव को लेकर कोई बात नहीं करता है। मुख्य बात यह भी सामने आती है कि जिन लोगों को यातायात नियमों का पूरा ज्ञान नहीं होता है, उनके भी लाइसेंस बना दिए जाते हैं। इसके बात परिवहन विभाग में 'सेट' किए गए सिस्टम में भी देखने को मिलती है। सूत्रों की माने तो ड्राइविंग टेस्ट के दौरान मिली भगत कर काफी लापरवाही बरती जा रही है। यही कारण है कि ड्राइविंग ट्रेक पर टेस्ट देने वाले वाहन चालक 95% से ज्यादा पास हो रहे हैं। तुलना की जाए तो बोर्ड परीक्षाओं से भी बेहतर परिणाम परिवहन विभाग का ड्राइविंग टेस्ट दे रहा है, जबकि जिंदगी की परीक्षा ज्यादा महत्वपूर्ण मानी गई है। यातायात नियमों का ज्ञान नहीं होने के कारण भी सड़क पर हादसे से हो जाते हैं। हर माह 500 से ज्यादा लाइसेंस के लिए आवेदन होते हैं और इनमें ड्राइविंग टेस्ट में फेल होने वालों की संख्या नाम मात्र की होती है। करीब 3 हजार लाइसेंस पर 120 आवेदकों के ही फेल होने की जानकारी मिली है।
मिली भगत या ऑटोमेटिक ट्रेक का सिस्टम
ड्राइविंग ट्रेक पर अलग से स्टाफ नियुक्त रहता है। कहने को तो यह ऑटोमेटिक ड्राइविंग ट्रेक है लेकिन काफी कुछ यहां नियुक्त स्टाफ के हाथ में रहता है। ईमानदारी से टेस्ट हो तो आधे से ज्यादा अभ्यर्थी फेल हो जाए। परिवहन विभाग से मिली जानकारी के अनुसार इस वर्ष जनवरी माह में 713 ने टेस्ट दिया, जिसमें से मात्र 22 ही फेल हुवे। ऐसे ही फरवरी में 162 में से 21, मार्च में 493 में से 23, अप्रैल में 836 में से 23 तथा मई माह में करीब 553 में से 22 अभ्यर्थी ही फेल हुवे हैं।
थोड़ा सीख लें तो भी फेल होने की संभावना कम
ड्राइविंग लाइसेंस को लेकर प्रादेशिक परिवहन अधिकारी ज्ञानदेव विश्वकर्मा ने बताया कि ड्राइविंग लाइसेंस की ट्रायल ऑटोमेटिक ड्राइविंग ट्रैक पर की जाती है। इसके अंतर्गत एक सॉफ्टवेयर है जो कि पूरे राजस्थान में मान्य है। सॉफ्टवेयर के आधार पर जो रिजल्ट आता है व पास और फेल होता है। इसमें मानवीय हस्तक्षेप शून्य कर दिया गया है। वाहन संचालक है, वह जिस तरह से चला रहा है उसकी वीडियोग्राफी के माध्यम से सॉफ़्टवेयर द्वारा एनालाइज किया जाता है। उसमें पास में फेल का परिणाम आता है। विश्वकर्मा ने बताया कि अभ्यर्थी के टेस्ट देने के दौरान ट्रैक पर इंस्पेक्टर सहित अन्य स्टाफ मौजूद रहता है। प्रादेशिक परिवहन अधिकारी ने बताया कि जनवरी से मई तक 2700 के आसपास लाइसेंस के आवेदन प्राप्त हुए तथा करीब 115 के आसपास फेल हैं। प्रादेशिक परिवहन अधिकारी ने बताया कि अगर कोई थोड़ा भी सीख कर आता है तो उसके पास होने की लगभग पूरी संभावना होती है। ऐसा नहीं है कि वाहन चालक से एक गलती हो जाएगी और वह पूरी तरह से फेल हो जाएगा। उसे तीन से चार अवसर प्रदान किए जाते हैं। उससे मिस्टेक हो जाती है तो भी कुछ ना कुछ अंक मिलते हैं। उन्हीं अंकों के आधार पर उनके पास होने की संभावना रहती है।