चित्तौड़गढ़ - अल्ट्राटेक सीमेंट की जनसुनवाई 29 को, उत्पादन बढ़ाने के प्रभाव को लेकर होगी चर्चा
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सीधा सवाल। चित्तौड़गढ़। जिले को सीमेंट हब कहा जाता है। यहां कई बड़े उद्योग समूह द्वारा सीमेंट इकाइयों का संचालन किया जाता है। जिन्हें समय-समय पर अपने उत्पादन विस्तार, इकाई विस्तार, खनन कार्य को लेकर जनमानस से चर्चा करनी होती है और इसके बाद उन्हें स्वीकृति मिलती है। इस पूरी प्रक्रिया को प्रशासनिक भाषा में जनसुनवाई कहा जाता है। इसी क्रम में आगामी 29 अगस्त को सावा में संचालित अल्ट्राटेक सीमेंट के संबंध में पर्यावरण स्वीकृति हेतु जनसुनवाई प्रस्तावित है। संभावना जताई जा रही है कि इकाई के समीप स्थित ग्राम पंचायतो के निवासी ग्रामीणों के साथ जनप्रतिनिधि इस जनसुनवाई में भाग लेंगे और इकाई के उत्पादन विस्तार से होने वाले प्रभावों पर फैक्ट्री प्रबंधन और ग्रामीणों के बीच चर्चा होगी इसके पश्चात स्वीकृति जारी की जाएगी। लगभग ढाई महीने पूर्व इस जनसुनवाई का आयोजन किया जाना था। लेकिन जानकारी में सामने आया कि राजनीतिक हस्तक्षेप के बाद यह जनसुनवाई रोक दी गई थी। अब दोबारा इस जनसुनवाई का आयोजन किया जा रहा है।

प्रदूषण प्रभावों पर होती है चर्चा, लेकिन लोग करते हैं रोजगार की मांग

जानकारों की माने तो यह ऐसा अवसर होता है जब खुले मंच से ग्रामीण अपनी पीड़ा सरकार, प्रशासन में प्रबंधन के सामने रख पाते हैं। इकाई प्रबंधन से होने वाली समस्याओं को लेकर ग्रामीणों को अपने विरोध के स्वर मुखर करने और इकाई के चलते होने वाली परेशानियों से विस्तार रोकने का सुनहरा मौका होता है। लेकिन जानकारी के अभाव में ग्रामीण अपनी रोजगार संबंधी परेशानियों को रखते हैं जिसका इस जनसुनवाई से लेना-देना नहीं होता है। प्रदूषण संबंधी मुद्दों पर चर्चा करने पर उत्पादन विस्तार को रोके जाने तक का प्रावधान है, लेकिन जानकारी के अभाव में लोग मूल मुद्दों से भटक कर दूसरे मुद्दों पर अपनी बात रखते हैं, जिससे कि इकाई अपना काम निकाल लेती है और ग्रामीण मूल मुद्दों की बजाय अन्य मुद्दों पर विरोध करते हैं जिससे फैक्ट्री को स्वीकृति मिलने में किसी प्रकार की कठिनाई नहीं आती है। यदि वास्तविकता में परेशानियां है और सही ढंग से उन्हें इस मंच पर उठाया जाए तो प्रबंधन को समस्याओं के समाधान के साथ-साथ अपने विस्तार की पूरी प्रक्रिया को रोकना पड़ सकता है।

कंपनी करती है पहले ही जुगाड़

अल्ट्राटेक द्वारा उत्पादन विस्तार के लिए इस जनसुनवाई की प्रक्रिया को पूरे करने के लिए तैयारी पूरी कर ली गई है। लेकिन सूत्र बताते हैं कि इकाई द्वारा दोहरी तैयारी की जाती है, जिसमें एक तैयारी तो कार्यक्रम को आयोजन को लेकर होती है तो दूसरी तैयारी पूरी तरह से अंदर खाने चलती है, जिसमें विरोध करने पर लोगों को मैनेज करना और फैक्ट्री प्रबंधन के हित में बोलने के लिए लोगों को तैयार करने की प्रक्रिया पूरी की जाती है। इसके तहत कुछ लोगों को फैक्ट्री के विरोध में तो कुछ को फैक्ट्री के पक्ष में पहले से ही तैयार करके रखा जाता है जो मंच पर इस तरह की तस्वीर पेश करते हैं कि स्वीकृति को लेकर किसी तरह की परेशानी प्रबंधन को नहीं आए। नियमों के जानकारों का कहना है कि इस पूरे कार्यक्रम की वीडियो रिकॉर्डिंग की जाती है, जिसमें 2 घंटे की वीडियो रिकॉर्ड होती है और प्रबंधन का प्रयास यह रहता है कि पहले 2 घंटे उन लोगों को बोलने का मौका दिया जाए जो फैक्ट्री के प्रबंधन के पक्ष में बात करते हैं। जिससे कि सरकार के पास आपत्ति होने की स्थिति में इसी प्रकार का रिकॉर्ड उपलब्ध हो जो प्रबंधन के पक्ष का हो, जिससे किसी प्रकार की परेशानी का सामना प्रबंधन को नहीं करना पड़े और इसके लिए इस बात के पूरे प्रयास किए जाते हैं कि विरोध में बोलने वाले लोगों को किसी प्रकार रोका जा सके, जिससे कि केंद्रीय स्तर पर जाने वाली वीडियो फुटेज में या तो विरोध दिखाई ना दे और यदि विरोध होता है तो उसका प्रभाव किसी प्रकार स्वीकृति पर नहीं पड़े।

जारी करें फिजिकल एसेसमेंट रिपोर्ट

उल्लेखनीय है कि जब प्रबंधन को जनता के बीच जाना होता है तभी कंपनियां आमजन के बीच जाती है, बाकी कंपनियों का अपना सिक्योरिटी सिस्टम होने के चलते हैं बाकी समय में फैक्ट्री, उससे जुड़े लोग और वहां काम करने वाले लोगों के अतिरिक्त दूसरे आम ग्रामीण फैक्ट्री परिसर में घुस भी नहीं पाते हैं। ऐसी स्थिति में यदि लोगों को कीसी प्रकार की आपत्ति है तो जनसुनवाई के मंच से उन्हें अपनी बात मुखर करनी चाहिए। साथ ही जनसुनवाई के दौरान फैक्ट्री प्रबंधन द्वारा अपनी उपलब्धियों को मंच के माध्यम से गिनाने के स्थान पर जनसुनवाई से पहले सामाजिक सरोकारों से जुड़े कार्यों की भौतिक सत्यापन या फिजिकल एसेसमेंट रिपोर्ट तृतीय पक्ष द्वारा करवा कर सार्वजनिक करनी चाहिए, जिससे कि वस्तु स्थिति का लोगों को पता लग सके और लोग खुलकर प्रबंधन के पक्ष अथवा विपक्ष में अपने विचार और विरोध प्रदर्शित कर सके।

लगातार अल्ट्राटेक के खिलाफ लोगों ने किया है विरोध

ऐसा नहीं है कि अल्ट्राटेक सीमेंट की कार्य प्रणाली से लोग पूरी तरह से संतुष्ट हैं। बीते डेढ़ साल की बात की जाए तो समय-समय पर अल्ट्राटेक सीमेंट के आसपास के क्षेत्र के ग्रामीणों ने कलेक्ट्रेट पहुंचकर अपनी पीड़ा से प्रशासन को अवगत कराया है। लगभग आधा दर्जन गांवों के लोगों ने इस इकाई से होने वाले प्रदूषण और नुकसान को लेकर ज्ञापन के माध्यम से धरने, प्रदर्शन और विरोध कर प्रशासन से कार्रवाई की मांग की है। ऐसे में ग्रामीणों के पास यह सुनहरा अवसर है कि लोग अपनी मांग को ऐसे मंच से उठाएं, जहां सरकार, प्रशासन और मीडिया सभी एक मंच पर मौजूद हो, जिससे कि उनकी समस्याओं के निराकरण को लेकर प्रबंधन को मजबूर होना पड़े। क्योंकि बाकी समय में जब ग्रामीण विरोध करते हैं तो उनके विरोध को दबाने का प्रयास किया जाता है, लेकिन जनसुनवाई के मंच पर प्रबंधन ऐसा नहीं कर सकता। हालांकि कई बार यह देखा गया है कि लोग विरोध करने पहुंचते हैं तो फैक्ट्री अपने समर्थकों को इस प्रकार तैयार करके रखती है कि यदि कोई बड़ा विरोध हो तो समर्थकों के माध्यम से उसे दबाया जा सके और कई बार समर्थक और विरोधी आमने-सामने हो जाते हैं जिसका फायदा फैक्ट्री को मिलता है। इसलिए जो लोग यदि प्रबंधन से किसी प्रकार परेशान या प्रताड़ित है तो संयमित तरीके से अपनी बात रखें जिससे कि ऐसे लोगों को मौका नहीं मिले जो प्रबंधन से उपकृत होने के बाद लड़ाई झगड़े पर उतारू हो जाते हैं। और प्रबंधन के विरुद्ध जो मंशा है उसे सही मंच के माध्यम से पहुंचा कर ठोस कार्रवाई किए जाने की दिशा में काम हो सके। साथ ही कई बार यह भी देखने में आया है कि उपकृत लोगों द्वारा विरोध करने वालों को बोलने और विरोध दर्ज कराने से रोका जाता है और यह सब प्रशासन की मौजूदगी में होता है, इसलिए जन सुनवाई के मंच पर मौजूद अधिकारियों को भी चाहिए कि ऐसे लोग जो विरोध करने वाले लोगो को नुकसान पहुंचा सकते हैं या रोकते हैं उन्हे सख्ती से नियंत्रित किया जाए जिससे कि जनसुनवाई की सार्थकता साबित हो।

पंचायत स्तर से ही सुनिश्चित हो पक्ष या विपक्ष

आमतौर पर सामने आता है कि जिन जनप्रतिनिधियों की जिम्मेदारी होती है उनकी स्वीकृति के बिना कार्य संभव नहीं है तो प्रबंधन उन्हें पहले ही अपने पक्ष में करने का प्रयास करता है और ऐसे में जनप्रतिनिधि मंच के सामने खड़े होकर दूसरा रवैया अपनाते हैं तो कागजों में कंपनी की आवश्यकताओं की पूर्ति पहले ही कर देते हैं, इसलिए यदि लोग अपना पक्ष मजबूत करना चाहते हैं तो उन्हें प्रयास अपने ग्राम पंचायत स्तर से शुरू करने चाहिए। यदि किसी ग्राम पंचायत क्षेत्र के ग्रामीण किसी समस्या से ग्रस्त है और विस्तार नहीं चाहते हैं तो उन्हें इस बात की पहल करनी चाहिए कि उनके क्षेत्र के सरपंच, पंचायत समिति सदस्य, जिला परिषद सदस्य उन्हें लिखित में इस बात का पत्र दें जिसे जनसुनवाई के दौरान सुनवाई करने वाले अधिकारी को दिया जाए, जिससे कि उनका पक्ष मजबूत हो सके। क्योंकि कई बार ऐसा सामने आया है कि ग्रामीणों के दबाव में तो सार्वजनिक रूप से यह जनप्रतिनिधि इकाई प्रबंधन के विरोध में बोलते हैं लेकिन लिखित रूप से इस बात की सहमति देते हैं कि उन्हें स्वीकृति दिए जाने से कोई आपत्ति नहीं है, ऐसी स्थिति में विरोध रिकॉर्ड पर नहीं होता है लेकिन सहमति रिकॉर्ड पर दर्द हो जाती है। इसलिए ग्रामीण पहले यह सुनिश्चित करे की ग्रामीणों की सहमति के बिना यह जन प्रतिनिधि प्रबंधन को किसी प्रकार का लिखित दस्तावेज नहीं दे, जिससे समस्या के समाधान की दिशा में कार्रवाई हो सके।

उद्योगों से होता है विकास, सरकार की बढ़ती है आय

उद्योग इकाइयां विकास के लिए भी आवश्यक है, वही उद्योग इकाइयों के विस्तार के साथ सरकार की आय में बढ़ोतरी होती है। विभिन्न तरह के माध्यम से उद्योगों से एक और जहां सरकार को सीधी आय होती है वहीं दूसरी और अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार और आधारभूत विकास में भी यह इकाइयां स्थानीय स्तर पर लाभकारी साबित होती है। परंतु यह वहां के रहने वालों को विशेष अधिकार है कि उनके दैनिक जीवन पर यदि कोई प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है तो वह उसका सही मंच पर विरोध करें और समस्या का समाधान हो सके ऐसी स्थिति में आवश्यक है कि औद्योगिक विस्तार के साथ-साथ स्थानीय समस्याओं के समाधान की दिशा में किस प्रकार काम किया जा सकता है उसको निर्धारित करने के लिए बनाए गए मंच पर लोग अपनी बात स्पष्ट रूप से रखें, फिर चाहे वह पक्ष में हो या विपक्ष में, लेकिन संयमित तरीके से अपनी बात प्रबंधन, सरकार और मीडिया बीच पहुंचाने का यह मंच के जरिया है, इसलिए लोगों को अधिक से अधिक अपनी सहभागिता दिखानी चाहिए, जिससे औद्योगिक विस्तार सही तरीके से और नियमों के अनुरूप हो पाए।


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