मारवाड़ के खूंखार योद्धा पदिया मीणा का है जिसके नाम से अंग्रेजों के साथ-साथ बड़ी-बड़ी रियासतें भी कांपती थी।
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मीणा आदिवासी राबिन हुड मारवाड़ का पदिया मीणा




पारस मीणा@राजस्थान के मारवाड़ और मेवाड़ की धरती ने कई वीर मीणा योद्धाओ को जन्म दिया। जिन्होंने ना सिर्फ राजस्थान बल्कि पुरे भारत वर्ष का सदियो तक अपने शौर्य से रक्षण प्रदान किया। राजस्थान मारवाड़ के पदिया मीणा के इस परिचय में राजस्थान के आदिवासी रॉबिन हुड नाम से मशहूर पदिया मीणा को हम विस्तृत रूप से देखेंगे।          मारवाड़ के गौड़वाड़ मे मीणा अपनी प्रतिकात्मक स्वतंत्र सत्ता कायम कर रखी थी।अपने परगने और उनके स्वतंत्र सरदार या प्रमुख बना रखे थे। बहादूरी, विरता और दिलेरी की बहुत सी गाथाये आज भी मारवाड़ में सुनने को मिलती है। गौडवाड के मीणा अपने क्षेत्र में कभी दूसरों की दखलअंदाजी को नहीं स्वीकारा चाहे वह अंग्रेज हो या राजपूत। यह बात आज भी मीणाओं में देखने को मिलते हैं वह अपना जीवन स्वतंत्र रूप से जीवन यापन करते हैं। कर्नल जेम्स टॉड ने मीणाओं की वीरता और जीवन मुक्त कंठ की प्रशंसा की और यहां के क्षेत्र को रोमांचक गाथाओं का विपुल भंडार बताया।मीणा समुदाय की लगातार छापामार युद्ध नीति और उनकी बहादुरी असाधारण कार्यों को करने और नाम कमाने की प्रवृत्ति बढ़ गई थी। इनको दबाने के लिए अंग्रेजों ने कई तरह की रणनीति अपनाई राजपूतों के साथ मिलकर इन्होंने नसीराबाद छावनी मेरवार्, मेर बटालियन खेराड, मेवाड़, बागड़ आदि। लेकिन यह समुदाय अंग्रेजों को यहां से बाहर निकालने का पक्षधर था लेकिन दुर्भाग्य यह रहा कि यहां के स्थानीय राजपूत शासकों ने इनकी सहायता करने के बजाय दमन करना शुरू किया। अंग्रेजो ने मीणाओं से काफी प्रभावित हुए और अंग्रेजो ने सुपरिन्टेन्डन्ट ऑफ मीणा डिस्ट्रिक्ट बनाना पड़ा।धीरे धीरे अपने समुदाय पर हो रहे शोषण को लेकर आदिवासी युवाओं ने हथियार उठाए और अपने हक और देश की आजादी के लिए संघर्ष किया। यहां के लोग जनसाधारण के लिए मसीहा हमदर्दी देशी और विदेशी शासक को उखाड़ फेंकने वाली स्वतंत्रता प्रेमी देशभक्त और स्वतंत्रता सेनानी थे।राजस्थान के इतिहास में प्रसिद्ध बागी या डकैत के नाम से प्रसिद्ध पदिया मीणा का जन्म 1836 में मारवाड़ सिरोही क्षेत्र के एक गांव में हुआ। बचपन से ही अच्छा लड़ाकू और अपने समाज के प्रति जागरूक था उनके पूर्वज संपूर्ण मारवाड़ के कबीलाई शासक थे। वीरता और शौर्य गाथा है उनकी रगों रगों में बसती है। 13 वर्ष की आयु में ही बगावत का बिगुल बजा दिया और उसे बागी नाम दिया गया। जमीदार सामंत और अंग्रेजो को लूटना आरंभ कर दिया। लेकिन लूट कार्य अपने लिए नहीं बल्कि अंग्रेजों और सामंतों से शोषित जनता के भले के लिए करता था। लोगों ने उसे अपना रॉबिनहुड मान लिया जो अमीरों से लूट कर गरीबों में बांटने का काम करता था। पदिया मीणा कोई डाका डालने वाला डकैत नहीं था वह एक बागी था जिसका संकल्प था कि विदेशी सत्ता को और उनके सहयोगियों को यहां से मार भगाना है।बागियों के शिरोमणि पदिया मीणा ने गरीब लोगों का दिल जीत लिया और वह अंग्रेजों और राजपूत शासकों की नींद हराम करने में सफल हुआ। लेकिन उसे पकड़ने में हमेशा अंग्रेज और राजपूत शासक नाकाम रहे। वह अपने आप का भेष बदलने और फुर्ती कायल के लोग दीवाने थे। लडने के मामले में इतना तेज था कि अकेला 30 लोगों पर भारी पड़ता था।गोडवाड के मीना बागियों के सम्बन्ध में यहाँ के गाँवो में एक कहावत चली आई है। ‘धणी री वाली नै, लारो भाखर नै, खियल रा मुथा नी वैता तो गोडवाड री बनियानिया सोने रे घड़े से पाणी भरती। अर्थात अगर धणी गाँव की छोटी नदी,लारा भाखर की गुफाएं (मेवासा) और खियल गाँव के मेहता मुथा नहीं होते तो गोडवाड के बणीयो की औरते सोने के घडों से पानी भरती। धणी नदी जो नहर की तरह गहरी होने से बागी गिरोह के आने जाने का मुख्य मार्ग था। लारा भाखर की गुफ़ाए उनके रहने का गुप्त मेवासा था। राजस्थान की एक कहावत और प्रसिद्द है ‘मेंणा रो बैर रे सौ साल सड़ो नी लागै ...अर्थात मीनों की दुश्मनी सौ साल से भी ज्यादा समय तक चलती है उनकी अगली पीढ़ी बदला चुकता करती है। पूरा मारवाड़ उनके नाम से कांपता था धाडैती की टोली को द्रागडा कहते थे। उनकी औरतें वीरता पूर्ण कार्यों को बखान करती और कहती.... थारी कणिया को कटारो कोण बांधेगो,थारो छोगलो पोतियों कोण बांधेगो, थारा कमठा और तीर कोण रान्खेगो ?”

क्रांतिकारी पदिया मीणा की लगातार अंग्रेजों और शासकों को लूटने की प्रक्रिया बढ़ने लगी। अंग्रेज और जोधपुर के महाराजा प्रताप सिंह ने 1852 में एक सेना की टुकड़ी तैयार की उसे पकड़ने के लिए। सिरोही के फौजदार नाथु सिंह ने उसके साथी बालिया को लालच देना चाह पर वह तैयार नहीं हुआ। लगातार दबाव बढ़ने लगा और वह गुजरात चला गया फिर वापस सिरोही में रहने लगा। गगला की मां के संकट समय उसे खाना पहुंचाया करती थी। वहां पर अंग्रेजों की सेना से एक मुठभेड़ में अपने साथी को गोली लगी लेकिन पदिया मीणा वहां से सही सलामत फरार होने में कामयाब रहा। 1857 की क्रांति में स्वतंत्रता सेनानियों को भरपूर सहायता प्रदान की।

लेकिन एक बार फ़ोर्स से लुटी हुई बन्धुक को लेकर साथी टीमला और पदिया में मतभेद हो गया | पदिया को पता चला कि जोधपुर महाराजा प्रताप सिंह ने अंग्रेजो से मिल पक्का इंतजाम कर रखा है। मारवाड़ से देवली (टोंक) चले गया कुछ समय बाद मारवाड़ के गाँव अनघोर आकर रहने लगा। अंग्रेजों को 35 वर्ष बाद सफलता मिली और उसे धोखे से सोते हुए गोड़वाड़ के गांव अनघोर मे से हाकिम मेड़तिया जुझार सिंह ने बन्दी बना लिया। जोधपुर दरबार के सामने पदिया मीणा को पेश किया गया। बताया जाता है कि उसकी साथी ने यह सूचना पुलिस को लालच में आ कर दी। गिरफ्तारी के समय 52 वर्ष का पदिया हो चुका था। अगस्त 1887 में उसे गिरफ्तार किया गया और नवंबर 1887 में उसे जोधपुर में फांसी हो गई। फांसी के दौरान अंग्रेज उसे फांसी का फंदा लगाने में भी डर रहे थे। जेल के दौरान पदिया मीणा खूब हंसता गाता और अपने कार्य पर गर्व करता था और वह कहता सबको यह क्रांति मैंने यहां तक पहुंचाई है मेरे अपने इस क्रांति को और आगे तक लेकर जाएंगे।पदिया की मां वीरांगना थी और जब उसकी मां को पता चला कि वह गिरफ्तार हो चुका है तो दुखी होने की बजाए गुस्सा हो गई। उसको खजाना लुटने,रियासती सैनिको को मारने सामन्तो व राजा से विद्रोह के अपराध मे फांसी की सजा दी गई । तब उसकी मां मिलने गई मां ने कहा तू ने मेरा दुध लजा दिया मैने तुझे नामर्द की तरह मरने के लिये पैदा नही किया था तू शुरवीर की तरह लड़कर मरता तो मुझे गर्व होता । तब पदिया बोला मां मै धोखे मे पकड़ा गया नही तो इन राजपूतो और अंग्रेजो को बता देता मीणा क्या होता है। अब तो बात अगले जन्म पर गई पर परमेश्वर मुझे अगले जन्म मे भी मीणा ही पैदा करे मै इन्हीँ पहाड़ों मे जन्म लूँ और फिर ऐसी ही बहादूरी और नामवरी के काम करुँ । पदिया की मां ने कहा मुझे मेरे बेटे पर गर्व है मैं हर जन्म में ऐसी बेटी को मांगना चाऊंगी जो गरीब लोगों का मसीहा बनकर उनकी सेवा करें।

संदर्भ सूचि:-

पीएन बैफलावत मीणा ने पदिया मीणा के इतिहास को सबके सामने लाया और उन्होंने इस पर कई आर्टिकल लिखकर पब्लिश करवाएं कुछ किताबों में भी अब इसका जिक्र हुआ है।

संदर्भ सूचि:- 1-रिपोर्ट –मरदुमशुमारी राज मारवाड़ 1891 ई० –जिल्द-3 पृष्ट-122,124 । 2-राजस्थान की जातियां –बजरंग लोहिया 1954 पृष्ट-44 । 3-मीना इतिहास –रावत सारस्वत -1968 पृष्ट- 52,53। 4-लादूराम मीना तख्तगढ़ जोधपुर से वार्ता। 5-जागा-बही


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