डेस्क / लेख - वोट बैंक की सियासत का दोहरा चरित्र
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डॉ. दिलीप अग्निहोत्री
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

गाजियाबाद में एक मुस्लिम बुजुर्ग के साथ बदसलूकी व मारपीट की घटना शर्मनाक थी। लेकिन इसको साम्प्रदायिक रंग देना भी शरारतपूर्ण था। इतना अवश्य हुआ कि इस बहाने वोटबैंक की सियासत एकबार फिर बेनकाब हो गई। गाजियाबाद की इस घटना की सच्चाई समझे बिना प्रदेश सरकार पर साम्प्रदायिक आधार पर हमले शुरू हो गये। ऐसा करने वालों में राहुल गांधी भी अपने चिर परिचित अंदाज में शामिल थे। कहा गया कि योगी के शासन में राज्य में मुसलमानों पर अत्याचार की घटनाएं सामने आ रही हैं। लेकिन विडंबना देखिए यही लोग पश्चिम बंगाल में हिंदुओं के उत्पीड़न पर खामोश हैं। किसी ने यह नहीं कहा कि ममता सरकार में हिंदुओं पर हमले हो रहे हैं। सेक्युलर सियासत का यह दोहरा चेहरा बेनकाब हुआ है। बंगाल की असहिष्णुता पर अजीब खामोशी है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पिछले कार्यकाल का शुरुआती दौर याद करिए, तब असहिष्णुता के नाम पर पूरे देश में सुनियोजित अभियान चलाया गया था। इसमें अपने को सेक्युलर घोषित करने वाली राजनीतिक पार्टियों के अलावा प्रगतिशील लेखक पत्रकार व कलाकार भी शामिल थे। नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने पर देश छोड़ देने का पहले से संकल्प लेने वाले भी इसमें सहभागी थे। वैसे इन्होंने अपना संकल्प पूरा नहीं किया, लेकिन संविधान व प्रजातन्त्र के प्रति इनकी कथित आस्था का खुलासा अवश्य हो गया। क्योंकि इन्हें संविधान के अनुरूप प्रधानमंत्री का निर्वाचन स्वीकार नहीं था। इन सभी ने कुछ अप्रिय व आपराधिक घटनाओं को तूल दिया। कहा कि देश में असहिष्णुता बहुत बढ़ गई है। दिलचस्प यह कि इन्होंने जिन घटनाओं का उल्लेख किया था, उनमें एक-दो तो यूपीए सरकार के समय की थी, फिर भी कहा गया कि केंद्र में भाजपा सरकार बनने के बाद असहिष्णुता बढ़ गई है। इन अभियान में सम्मान वापसी की पटकथा भी शामिल थी। अनेक कलाकारों व लेखकों ने सरकार से मिले अपने सम्मान को ही वापस कर दिया था। एक फ़िल्म अभिनेता ने तो यहां तक कहा कि उनकी बेगम को भारत में रहने से डर सताने लगा है। लेकिन उन्होंने यह नहीं बताया था कि वह डर दूर करने के लिए किस देश की शरण लेना चाहती हैं। क्योंकि माना तो यह जाता है कि दुनिया में भारतीय मुसलमानों को सर्वाधिक अधिकार प्राप्त है। इसका उल्लेख करीब तीन दशक तक भारत में रहे बीबीसी पत्रकार मार्क तुली ने तथ्यों का आधार पर किया था। केंद्र में भाजपा सरकार बनने के बाद भी इन अधिकारों पर कोई फर्क नहीं पड़ा था।
निश्चित ही हिंसक घटनाएं निंदनीय है। सभ्य व संवैधानिक व्यवस्था वाले देश में इनके लिए कोई जगह नहीं होनी चाहिए। लेकिन असहिष्णुता के नाम पर जैसा अभियान चलाया गया वह दुनिया में भारत की छवि धूमिल करने वाला था। निंदनीय घटनाओं में भी खुल कर भेदभाव किया जाता है। प्रकरण भाजपा शासित प्रदेश में हो तो असहिष्णुता अन्य प्रदेशों में हो तो आहट तक नहीं होती। इतना ही नहीं आरोपी हिन्दू हो तो हंगामा, किसी वर्ग विशेष का हो तो फिर वही चिर परिचित खामोशी। इसके बाद भी ऐसे लोग सेक्युलर होने का दावा करते है। पश्चिम बंगाल में इस कथित सेक्युलर राजनीति की पराकाष्ठा देखी जा सकती है। यहां चुनाव के बाद हिंसक गतिविधियां चल रही है। भाजपा समर्थकों को निशाना बनाया जा रहा है। यह बताया जा रहा है कि इनको अपनी मर्जी से वोट देने का अधिकार नहीं है। लेकिन यहां सैकड़ों घटनाओं के बाद भी किसी को असहिष्णुता दिखाई नहीं देती। किसी ने इसके विरोध में सम्मान वापस नहीं किया। किसी ने नहीं कहा कि उनको भारत में रहने से डर लग रहा है। गजब है इनका सेक्युलर चश्मा। दो-चार अप्रिय घटनाओं पर राष्ट्रव्यापी अभियान चलाया जाता है, वैसी ही सैकड़ों घटनाओं पर इनकी आँख नहीं खुलती। इस बेहयाई पर भी सेक्युलर होने की दावेदारी। यहां सरकार तो बदली लेकिन राजनीति व शासन का अंदाज पुराना है। जिस प्रकार वामपंथियों ने तीन दशक तक पश्चिम बंगाल में शासन चलाया था, ममता बनर्जी भी उसी मार्ग का अनुशरण कर रही हैं। वह जानती हैं कि इस अराजक कैडर के बल पर यहां लंबे समय तक शासन किया जा सकता है। यह कैडर विरोधियों का हिंसक तरीके से दमन करता है। भय का वातावरण निर्मित करता है। इससे सत्ता पक्ष के विरोधियों का मनोबल गिराया जाता है। करीब नब्बे सीटों पर भाजपा मामूली अंतर से पराजित हुई है। बताया जा रहा है कि भय के वातावरण के कारण ही भाजपा के बड़ी संख्या में समर्थक वोट देने ही नहीं गए। ममता बनर्जी की खुली धमकी ने भी भाजपा समर्थकों के बीच भय का माहौल बनाया। उनका बयान तृणमूल कॉंग्रेस कैडर का मनोबल बढ़ाने के लिए था।
ममता बनर्जी का कहना था कि केंद्रीय सुरक्षा बल चुनाव तक हैं, उसके बाद एक-एक को देख लिया जाएगा। यह तृणमूल कॉंग्रेस का विरोध करने वालों की तरफ खुला इशारा था। इसके बाद तृणमूल कॉंग्रेस के कार्यकर्ता विरोधियों को डराने-धमकाने में लग गए था। इसका अप्रत्यक्ष परिणाम चुनाव पर पड़ा। चुनाव के बाद तृणमूल कॉंग्रेस अपनी सुप्रीमों धमकी के अनुरूप ही आचरण कर रहे है। पश्चिम बंगाल के राज्यपाल जगदीप धनखड़ का बयान यहां की सच्चाई उजागर करने वाली है। संविधान मानवता में आस्था रखने वाले सभी लोगों का इससे विचलित होना स्वभाविक है। राज्यपाल ने कहा कि यहां की स्थिति लोकतंत्र के लिए घातक है। अपनी मर्जी से मताधिकार का प्रयोग करने वालों को प्रताड़ित किया जा रहा है। भय का माहौल बना दिया गया है। यहां निष्पक्ष और निर्भीक पत्रकारिता को सांप सूंघ गया है।
राज्यपाल प्रदेश का सवैधानिक प्रमुख होता है। संविधान ने उसे स्वविवेक की शक्ति भी दी है। लेकिन ममता बनर्जी संवैधानिक व्यवस्था को चुनौती दी। अधिकारियों को निर्देशित किया कि राज्यपाल को कोई रिपोर्ट ना दी जाए। इतना ही नहीं उन्हें बिना अनुमति राजभवन से बाहर ना निकलने को कहा गया। यह आचरण तो नजरबंदी जैसा है। लेकिन राज्यपाल ने साहस के साथ इसको ठुकरा दिया। वह पीड़ितों से मिलने पहुंचे। जब वह नंदीग्राम पहुंचे तो उन्हें आगे नहीं जाने की सलाह दी गई, लेकिन वह पहले पैदल फिर मोटरसाइकिल पर आगे बढ़े। पीड़ितों ने बताया कि हिन्दू होने के कारण हम संकट में हैं। बंगाल में दो करोड़ तीस लाख लोगों ने प्रतिपक्ष को वोट दिया है। इन लोगों में डर बनाने के लिए यह हिंसा की जा रही है। लोग इतने भयभीत हो गए हैं कि अब लाउडस्पीकर पर यह कहने लगे हैं कि हमने भाजपा को वोट देकर गलती कर दी है। उन्हें अपनी जान बचाने के लिए ऐसा कहना पड़ रहा है।


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