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एक बीघा क्षेत्र में भी नहीं भरा पानी, कीचड़ से भरे पानी में रह रही हजारों मछलियां
अखिल तिवारी
सीधा सवाल। चित्तौड़गढ़। तेज गर्मी और उमस से हर कोई आहत है। जलाशयों में भी पानी पूरी तरह सूखने की कगार पर है। ऐसे में जलीय जीवों पर संकट खड़ा हो गया है। घोसुंडा स्थित धार्मिक आस्था वाले इस तालाब में भी हजारों मछलियों का जीवन संकट में है। करीब एक बीघा क्षेत्र में ही कीचड़ युक्त पानी में हजारों मछलिया हैं। ऐसे में गर्मी से ही मछलियों की मौत हो रही है तो वहीं दूसरे जीव भी आसानी से मछलियों को नोचने लगे हैं। इससे तालाब में कभी भी पानी के साथ ही मछलियां ऐसे ही खत्म हो जाएगी। समय रहते ग्राम पंचायत या जिला प्रशासन कौन निर्णय नहीं करता है तो मछलियों का जीवन संकट में है। यहां मछलियां भी सामान्य से बड़े आकार की है। क्षेत्र के लोग भी चाहते हैं कि मछलियों को अन्यंत्र शिफ्ट किया जाए, जिससे इनका जीवन बच सके।
जानकारी के अनुसार जिला मुख्यालय से करीब 15 किलोमीटर दूर घोसुंडा गांव स्थित है। यहां गांव की शुरुवात में ही प्राचीन तालाब है। इस वर्ष मानसून की औसत से भी कम बरसात के कारण तालाब में पानी की आवक बहुत ही कम हुई थी। वहीं इस तालाब में लंबे समय से मछलियां हैं, जिनका वजन 10 से 15 किलो तक है। कम बरसात के कारण मई माह में ही पानी सूखने के कगार पर आ गया है। इसमें करीब एक बीघा क्षेत्र में ही छिछला पानी रह गया है। पानी सूखने से मछलियां भी मरने लगी है। शीघ्र ही इन मछलियों को दूसरी जगह शिफ्ट नहीं किया जाता है तो उनके जीवन पर संकट है। ग्राम पंचायत प्रशासन की उदासीनता के चलते इन मछलियों को शिफ्ट करने का कार्य नहीं हो पा रहा है। वहीं जिला प्रशासन तक यह बात नहीं पहुंच पा रही है। तालाब के पानी में सतह पर मछलियों को तैरते हुए आसानी से देखा जा सकता है। धार्मिक आस्था का तालाब होने के कारण यहां पहले शिकार पर रोक थी। ऐसे में मछलियों का आकार भी काफी बड़ा हो गया है।
धूप से भी मरने लगी है मछलियां जानकारी में सामने आया कि तालाब में मछलियों को आसानी से देखा जा सकता है। कम मात्रा में पानी होने के कारण तेज गर्मी के चलते पानी काफी गर्म हो जाता है। ऐसे में मछलियों की त्वचा जलने की शिकायत से इनकार नहीं किया जा सकता। तेज गर्मी के कारण भी मछलियां मरने लगी है लेकिन इस पर कोई ध्यान नहीं दे रहा है।
दूसरे जीव भी भटकते हैं तालाब के पास
एक तरफ जहां पानी खत्म होने के कारण मछलियों के जीवन पर संकट है तो दूसरी तरफ दूसरे जीवों को भी तालाब के पानी में मुंह मारते देखा जा सकता है। श्वान एवं सूअर दोनों ही तालाब के किनारे मंडराते रहते हैं। वहीं रात को अन्य वन्य जीवों के भी तालाब पर आने की संभावनाओं से इंकार नहीं किया जा सकता। इन कारणों से तालाब में मछलियों की संख्या कम होती जा रही है।
अब लोगों के शिकार से भी इंकार नहीं
जानकारी में सामने आया कि धार्मिक आस्था से जुड़ा तालाब होने के कारण यहां पर शिकार पर रोक है। पूर्व में भी शिकार के मामले सामने आए थे लेकिन लोगों ने विरोध कर दिया था और पुलिस भी मौके पर पहुंची थी। लेकिन अब जब तालाब में नाम मात्र का पानी रह गया है तथा बिना जाल डाले भी मछलियों का शिकार हो सकता है। इस समय यहां लोगों के द्वारा मछलियों के शिकार से इंकार नहीं किया जा सकता।
प्रयास जारी, लेकिन पर्याप्त नहीं
यहां तालाब में मछलियों को बचाने का प्रयास जारी है लेकिन वह ऊंट के मुंह में जीरा साबित हो रहा है। हाल ही में एक पाइप से तालाब में पानी छोड़ने का कार्य फिर से शुरू किया गया है। लेकिन यह पर्याप्त नहीं है। जितना पानी तालाब में आता है उससे ज्यादा गर्मी मके कारण हवा में उड़ जाता है।