चित्तौड़गढ़ - गुरू भी शिल्पकार की तरह होते है - आचार्य सुनील सागर
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श्रीमद् आदिनाथ जिनबिम्ब पंच कल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव एवं विश्व शांति महायज्ञ मोक्ष कल्याणक के साथ सम्पन्न

सीधा सवाल। चित्तौड़गढ़। नव निर्मित श्री आदिनाथ जिनालय का भव्यतम श्रीमद् आदिनाथ जिनबिम्ब पंच कल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव एवं विश्व शांति महायज्ञ सोमवार 25 नवंबर को मोक्ष कल्याणक महोत्सव के साथ ही छह दिवसीय आयोजन सम्पन्न हुए। सोमवार को महोत्सव की प्रवचन सभा में अतिथि उदयपुर विधायक ताराचंद जैन सहित अन्य जनप्रतिनिधियों ने आचार्य सुनील सागर जी महाराज को श्रीफल भेंट कर वंदना की एवं कहा कि पंच कल्याणक महोत्सव के माध्यम से हमारा भी कल्याण होता है।
प्राकृत ज्ञान केसरी, प्राकृत मार्तण्ड राष्ट्र संत आचार्य श्री सुनील सागर जी महाराज ने सोमवार को मंगल प्रवचन के दौरान धर्मसभा को संबोधित करते हुए कहा कि आज भी अच्छी सोच व उसके सम्मान करने वालों की कोई कमी नही है। आचार्य श्री ने आह्वान किया कि सामाजिक संस्थाओं से जुड़ों और सिद्धांतों एवं जैन धर्म के संस्कारों को मत छोड़ों। आचार्य सुनील सागर जी ने कहा कि आत्म चिन्तन का यह अवसर था जिसका सभी ने भरपूर लाभ लियाहैं। पाशाण से भगवान तो बन गये। अब भीतर बैठे भगवान को भी भगवान बनाना है। धैर्य रखो, पत्थर की तरह कुछ बनना है तो कुछ सहना तो पड़ेगा ही। जब तक मोह नही टूटता है, तब तक कोई जीवात्मा परमात्मा नही बनता है। गुरू भी शिल्पकार की तरह ही होते है। कब कहा कितनी चोट मारनी है और कब कहा कितना आराम देना है यह गुरू अच्छी तरह जानते है। उदयपुर विधायक ताराचंद जैन ने अपने संक्षिप्त उद्बोधन में कहा कि पंच कल्याणक जैसे आयोजन के माध्यम से अपना भी कल्याण कर सके ऐसे हमारे सदैव भाव होने चाहिए। सम्पन्नता हमारे जन्म के साथ ही आ जाते है। भगवान महावीन ने बताया है कि त्याग वही है जो जीवन यापन रहे। अधर्म व पाप से बचे तथा पुण्य की ओर बढ़े यही जीवन है। इस मौके पर डॉ. आई एम सेठिया भी मौजूद रहे।

संस्कारों की पूंजी हमेशा अपने पास रखों

हाथों में कलम रखता हूं, बड़ा सोच कर कदम रखता हूं
तुम ऊंचे आसमान में ही सही, पर तूझें छूने का दम रखता हूं
उपरोक्त पंक्तियों को उद्गारित करते हुए आचार्य सुनील सागर जी ने कहा कि धरती पर चलते फिरते भगवान को देखना हो तो दिगम्बर मुनियों को देखों। पाशाण से परमात्मा की आत्मा को देखना है तो पंच कल्याण महोत्सव को देखों। किसी प्रकार का भय नही, असल में तो वितरागताओं के बल पर ही भगवान हो जाया जाता है। महादेवत्व के लिए वितरागता ही चाहिए। मुनि ने कहा कि अच्छी सोच एवं अच्छी सोच का सम्मान करने वालों की आज भी कोई कमी नही है। आप समाज में रूचि लेते है, धर्म ध्यान करते है तो कही ना कही आपको अधिकार भी मिलते है। सामाजिक क्षेत्र में आगे बढ़े, आम जनता में जाइये, सामाजिक संस्थाओं से जुड़ों लेकिन संस्कारों की पूंजी अगर आपके पास नही है तो आप एक समय के बाद धूल मे मिल जाओंगे।

धर्म अपने ही भीतर है

आचार्य सुनील सागर जी ने कहा कि जीवन में स्वार्थ और पैसे से ज्यादा कीमती है ज्ञान और आत्मा का कल्याण। साधन मिल जायेंगे, पद प्रतिश्ठा मिल जायेगी तो सुखी हो जाओंगे। लेकिन जब वैराग्य की ठोकर लगती है तो पता चलता है कि सुख तो हमारे अपने भीतर ही है। हम पहचान ही नही पा रहे है कि सुख का स्त्रोत कहा है। हिंसा और आतंक करने  वाले तो बहुत दुखी रहते है। इसलिए धर्म अपने भीतर ही है। मंदिर में जाकर हम घण्टा बजा रहे है, सोये खुद है और भगवान को जगा रहे है। मेरी मूर्ति तो मेरे भीतर है, बाहर की मूर्ति तो मुझें जगाने के लिए है। हम तो मोह, राग, द्वेश, पाप, कशाय में तो हम डूबे हुए है।
मोह टूटा तो मोक्ष हुआ
मुनि श्री ने कहा कि यदि पाशाण भगवान बन सकता है, संस्कार व स्थापना से भगवान बन सकता है तो क्यों नही हमारे विकार को गुरू के ज्ञान से काम करते हुए भगवान बन सकता है। किसी का तिरस्कार नही करना चाहिए। कई बार मनुश्य को षर्मिन्दा होने के भी मौके नही मिलते है। सच्चे धर्म का पालन करने से हमेशा के लिए बेड़ा पार हो सकता है। मान टूटे तो भगवान बने, मोह टूटा तो मोक्ष हुआ। जैसे सोना षुद्ध होता है वैसे आत्मा भी षुद्ध हो सकती है। पंच भूतों के चक्कर में हम भी भूत बन गये है। मरते सब है लेकिन मोक्ष विरलों का ही होता है। पंच कल्याण महोत्सव में पहुंचने के लिए नसीब चाहिए। सच्ची मौज मस्ती तो भगवान की भक्ति एवं भजन में होती है।
ज्ञान आत्मा में है
आचार्य श्री ने कहा कि जो ज्ञान स्वभाव वाला होता है उसके ज्ञान को ही विकसित किया जा सकता है। जब सारे आवरण हट जाये तब संपूर्ण जगत का ज्ञाता बन सकता है। ज्ञान आत्मा में है, बाहर नही है। बदलते युग के अनुसार सभी चीजे बदल सकती है लेकिन मोक्ष का मार्ग नही बदल सकता है। वीतरागता मार्ग पर चलने वाले बहुत कम मिलते है। जब तक जंजाल छोडोगे नही तब तक आप भगवान बनोंगे नही।

मंदिर भी एक स्कूल है

आचार्य श्री सुनील सागर जी महाराज ने कहा कि मंदिर भी एक तरह से स्कूल है जहां हम भगवान से सीखते है। भगवान की मूर्ति सिखाती है कि षांत बैठो, भागदौड मत करो। उठा पटक मत करों। षांत बैठोंगे तो सुखी हो जाओंगे। सभी को चाहिए कि वे चुप रहना सीखें। टिप्पणी से रिश्ते नही रास्त बनते है। एक चुप सौ सुख के बराबर है। जितना आवश्यक हो उतना ही बोलना चाहिए। मंदिर में भगवान की पूजा तो करो लेकिन प्रत्येक जीव का भी सम्मान करो। जीव चलते फिरते भगवान है। सम्मान नही कर सकते हो तो कम से कम कश्ट तो मत दो। प्रभु मंदिर में ही नही हमारें हद्य में भी विराजमान होने चाहिए।
 
यही मंगलकामनाएं है...

कोई पराया नही होता है। धर्म व पूजा पद्धति में भेदभाव इंसानों ने बनायें। सबसे ऊपर इंसान को रखे, सबसे पहले चैतन्य को रखे। आत्मा को रखे भगवान को रखे, आत्मशुद्धि के पथ पर सभी बढ़े यही मंगलकामनायें है। गुस्से, अहंकार, लोभ को जीतने की कोशिश करो। विकारों को हटाने की कोशिश करो। अगर आपने यह करना सीख लिया तो यह पंच कल्याणक महोत्सव सार्थक है। परिस्थितियों के सामने झूकें नही उन्हे निभाना सीखे, बल्कि बदलना सीखे। जो कुछ हो रहा है उसे स्वीकारते रहे। हिम्मत रखे व धैर्य बनाये रखे। रोने के लिए नही बल्कि मुस्कुराने के लिए पैदा हुए है। जो कुछ हो रहा है उसे स्वीकार करते जाए अपने भीतर संकलेश पैदा ना होने दे।
षंभुपुरा के लिए मंगल विहार
नव निर्मित श्री आदिनाथ जिनालय का भव्यतम श्रीमद् आदिनाथ जिनबिम्ब पंच कल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव  के बाद सोमवार दोपहर को प्राकृत ज्ञान केसरी, प्राकृत मार्तण्ड राष्ट्र संत आचार्य श्री सुनील सागर जी महाराज ससंघ षंभुपुरा की ओर मंगल विहार कर गये। आचार्य श्री ससंघ मंगलवार सुबह निम्बाहेड़ा के लिए मंगल विहार करेंगे।




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