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रोहित रेगर
सीधा सवाल। छोटीसादड़ी। प्रतापगढ़ जिले का छोटीसादड़ी कस्बा मेवाड़ राज्य का ऐतिहासिक नगर रहा है। यह सफर अपने गौरवशाली इतिहास के लिए प्रसिद्ध रहा है। इस क्षेत्र की व्यापारिक संपन्नता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि इस क्षेत्र को स्वर्ण नगरी के नाम से भी जाना जाता है। रियासत काल में व्यापार का केंद्र बने इस क्षेत्र में आज भी इतिहास के क्षणों की साक्षी के रूप में नगर सेठ गोदावत की हवेली मौजूद है। कस्बे में मौजूद यह हवेली क्षेत्र की तत्कालीन भव्यता और इतिहास के अनगिनत रहस्यों को समेटे हुए है। 6 मंजिला यह भवन अपने वास्तु कला के लिए जाना जाता है वहीं दूसरी ओर इसे 'स्वर्ण नगरी' के प्रतीक के रूप में भी पहचाना जाता है।
अफीम, कपास और अन्य फसल का होता था व्यापार
रियासत काल में भारत में मेवाड़ क्षेत्र अंग्रेजो के अधीन व्यापार नही होता था यहाँ का व्यापार स्थानीय व्यापारी के अंतर्गत था।मेवाड़ के किसानो द्वारा उत्पादित अफीम को गोदावत सेठ व अन्य व्यापारी खरीदते थे और यहाँ की अफीम को दूसरे देशों में निर्यात करते ,यहाँ की अफीम चीन आदि देशों को भेजी जाती थी जिसके बदले में विनिमय का माध्यम सोना माना गया।अफीम के बदले सोना आता था। छोटीसादड़ी क्षेत्र को अफीम और सोने के साथ-साथ अन्य व्यापारिक वस्तुओं के लिए एक अग्रणी केंद्र के रूप में माना जाता था। जानकार लोग बताते हैं कि गोदावत सेठ की हवेली को उसे समय आर्थिक समृद्धि और व्यापार का केंद्र माना जाता था।
मेवाड़ रियासत की सैनिक छावनी था यह नगर
छोटीसादड़ी नगर रियासत काल से ही चारो ओर बड़ी-बड़ी प्राचीरों से बंद किले नुमा था।जिसके चारों ओर विशाल द्वार थे। जो वर्तमान भी है, जो कभी रात्रिकाल में बंद होते थे। वही यह मेवाड़ रियासत काल मे सैनिक छवनी हुआ करति थी। इसके मध्य ओर बाहर जगह जगह बनी सुंदर व सुगम बावडिया बनी हुई है। इन बावड़ियों में हाथी भी आसानी से पानी पी सकता था। इस नगर को मराठा व मेवाड़ के संधि स्थल से भी विख्यात है।
छप्पनिया अकाल में हवेली का सामाजिक योगदान
बताया जाता है कि साल 1899 से लेकर 1900 के दौरान पूरे प्रदेश में अकाल पड़ा था। बुजुर्ग इसे छप्पनिया अकाल के नाम से संबोधित करते हैं। बताया जाता है की इस दौरान पशुओं के लिए चारे और मानव के लिए अन्न की कमी पड़ गई थी। उसे समय में मेवाड़ राज्य ने गोदावत सेठ से मदद की अपेक्षा की थी तब सेठ ने महाराणा को छोटीसादड़ी से उदयपुर तक अन्न से भरी बैलगाड़ी के धरुण्डे से धरुण्डा स्पर्श करते बैलगाड़िया उपलब्ध करवाने का भरोसा दिलाया था। ताकि मेवाड़ की जनता को अकाल में भी अन्न का अभाव नही होगा। वही यहाँ के लोगो मे शिक्षा की अलख जगाने के लिए निजी खर्चे पर विद्यालय खोला था जिसपर सरकार का भी साझेदारी थी जो गुरुकुल के नाम से जाना जाता है। इससे स्पष्ट होता है कि न केवल व्यापार व्यवसाय बल्कि सामाजिक सरोकार में भी सेठ जी की हवेली की तत्कालीन समय में महत्वपूर्ण भूमिका रही है।
'स्वर्ण नगरी' का नामकरण
एक और जहां भव्यता और व्यापारिक केंद्र के रूप में इसकी पहचान पहले से ही थी वही आजादी के बाद साल 1972 -73 के दौरान तत्कालीन केंद्र सरकार के निर्देश पर छापेमारी की गई थी। और हवेली की संपत्ति को सरकारी खजाने में जमा किया गया था बताया जाता है कि यहां से सोने की ईंटें भरकर ट्रक के माध्यम से खजाने में ले जाएगी और इतनी बड़ी स्वर्ण संपत्ति मिलने के बाद इसे स्वर्ण नगरी के नाम से जाना जाने लगा। यहां रेड पढ़ने के बाद तत्काल मुख्यमंत्री को इस मुद्दे पर इस्तीफा भी देना पड़ा था। यह हवेली एक और जहां अतीत को दर्शाती है वहीं दूसरी ओर तत्कालीन समय की हार्दिक संपन्नता और सामाजिकता का भी प्रतीक है। किसी के साथ इस ऐतिहासिक हवेली के रहस्य आज भी इतिहासकारो और स्थानीय निवासियों के लिए उत्सुकता का विषय है।
खास है हवेली की बनावट
सेठ छगनलाल की हवेली के नाम से प्रसिद्ध यह इमारत अपनी बनावट पर भी कुछ विशिष्ट दिखाई देती है। इस हवेली में दो प्रवेश द्वार बनाए गए थे। इनमें से एक द्वार पारिवारिक सदस्यों द्वारा उपयोग किया जाता था और दूसरा ब्राह्मण पुरोहित पंडित चौथमल के लिए उपयोग होता था। पंडित चौथमल सेठ के मुख्य सलाहकार थे। और यह द्वारा उनके लिए बनाए गए विशेष स्थान तक उनकी पहुंच प्रदान करता था। उनके प्रति सम्मान की झलक हवेली की वास्तुकला में भी देखने को मिलती है।