चित्तौड़गढ़ / निम्बाहेड़ा - कोरोना कर्फ्यू में बेहाल निम्बाहेड़ा, आवश्यक वस्तुओं के नाम मची लूट
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जागरूकता के चलते जिम्मेदार जांच कराने आगे आये

सीधा सवाल। निंबाहेड़ा। उपखंड मुख्यालय पर एक कोरोना संक्रमित रोगी सामने आने के साथ ही स्थिति नियंत्रण में होने का दावा करने वाले प्रशासन की पोल खुल कर सामने आ गई है। जिला व उपखंड प्रशासन व्यवस्थाएं करने में विफल साबित हो रहा है। कोरोना को लेकर लगाए गए कर्फ्यू के चलते आवश्यक वस्तुओं में लूट मची हुई है, दवाओं के लिए रोगियों को परेशान होना पड़ रहा है लेकिन उन तक दवाइयां नहीं पहुंच पा रही है। वायरस संक्रमण के बीच एक बड़ी समस्या निकल कर सामने आई है, जिस पर प्रशासनिक अधिकारी ना तो ध्यान दे रहे हैं और ना ही कोई इंतजाम कर पा रहे हैं। हालातों को देख कर यह कहना गलत नहीं होगा कि बड़ी संख्या में लोग भूखे सो रहे हैं। प्रशासन की और से जारी आंकड़ों की बात की जाए तो लॉक डाउन लागू होने से लेकर कर्फ्यू लगाए जाने तक प्रतिदिन करीब 4000 भोजन पैकेट अलग-अलग संस्थाओं की और से वितरित किए जा रहे थे, जो पिछले 3 दिनों से बंद है। महज लगभग 1200 रेडी टू ईट भोजन पैकेट नगरपालिका निंबाहेड़ा द्वारा बना कर वितरित किए जा रहे हैं, जो भी केवल आइसोलेशन क्वॉरेंटाइन और व्यवस्थाओं में जुटे कार्मिकों को ओर निराश्रितों को ही उपलब्ध कराए जा रहे हैं। हालांकि इन सब अव्यवस्थाओं के बीच जागरूकता का उदाहरण भी निंबाहेड़ा क्षेत्रवासियों ने प्रस्तुत किया है। कांग्रेस के युवा नेता ओर पार्षद के भाई के सैंपल में संक्रमण की पुष्टि होने के साथ ही जनप्रतिनिधियों और संक्रमित के संपर्क में आए लोगों ने आगे बढ़ कर अपनी जांच करवाने के साथ ही खुद को सोशल डिस्टेंस के दायरों में बांध लिया है। आपदा की इस स्थिति में जिला प्रशासन और उपखण्ड प्रशासन पूरी तरह विफल साबित हुआ है, जो स्पष्ट करता है कि आपदा की स्थिति में तैयारियों की जो बात कही जा रही थी वह केवल कागजी तैयारी थी, जिसका कोई धरातल नहीं था। प्रशासन की विफलता का नमूना यह है कि संक्रमित व्यक्ति के सामने आने के बाद भी अब तक प्रशासन सोर्स नहीं ढूंढ पाया है। प्रशासन की गलतियों का खामियाजा आमजन को भुगतना पड़ रहा है और इतना होने के बावजूद भी प्रशासनिक अधिकारी संवाद हीनता और संवेदनहीनता का प्रदर्शन कर रहे हैं।

पहले झूठे आंकड़े या भूखे सो रहे हैं लोग!

कोरोना जैसी आपदा में प्रशासन से लगातार मीडिया को राशन और भोजन पैकेट वितरण की जानकारियां मुहैया कराई जाती रही है। अधिकृत आंकड़ों की बात की जाए तो जनता रसोई नगरपालिका और स्वयंसेवी संस्थाओं के माध्यम से लॉक डाउन लागू होने के बाद से लेकर कर्फ्यू लगाए जाने तक प्रतिदिन लगभग 4000 भोजन पैकेट का वितरण किया जा रहा था, जो अब नगरपालिका के माध्यम से घट कर महज करीब 1200 रह गया है। इसके बारे में भी जानकारी लेने पर सामने आया है कि यह पैकेट केवल कोरोना के दौरान लगी सरकारी ड्यूटी या क्वॉरेंटाइन में रखे गए मरीजों ओर कुछ निराश्रितों को भेजे जा रहे हैं। ऐसे में बड़ा सवाल ये है कि वर्तमान में सही तरीके से लोगों को भोजन पैकेट पहुंचाया जा रहे हैं तो पहले झूठे आंकड़े क्यों प्रदर्शित किए गए और यदि पहले सही तरीके से संस्थाएं भोजन पहुंचा रही थी तो वे 4000 लोग जिन्हें भोजन पैकेट पहुंचाए जा रहे थे उन्हें 3 दिन से भूखा सोना पड़ रहा है। आपदा की स्थिति में यह बड़ा सवाल है क्योंकि प्रदेश के मुख्यमंत्री ने यह बात स्पष्ट कही थी कि किसी को भूखा नहीं सोने दिया जाएगा। लेकिन उपखंड स्तर के अधिकारी या जिला प्रशासन के अधिकारी अपने तौर पर व्यवस्थाएं जुटाने में नाकाम साबित हो रहे हैं, जिसके चलते यह आशंका प्रबल हो गई है कि करीब 3000 लोग प्रतिदिन भूखे सो रहे हैं। इनकी कोई सुध नहीं ली जा रही है।

मनमानी दरों पर बेच रहे सामान

क्षेत्र के एक व्यक्ति में संक्रमण की पुष्टि होने के साथ ही कर्फ्यू लगा दिया गया और कर्फ्यू के दौरान आवश्यक वस्तुओं के नाम पर लूट मची हुई है। सरस दूध के प्रति 1 किलो पर 5 से लेकर 10 रुपए की अतिरिक्त राशि वसूल की जा रही है। वहीं छोटे सब्जी विक्रेता थे, जिन्हें कर्फ्यू के कारण विक्रय विपणन करने से रोक दिया गया है, उनके स्थान पर अधिकृत पासधारियों को विक्रय करने की स्वीकृति दी गई है जो अधिक दामों पर सब्जी का विक्रय कर रहे हैं। भले ही प्रशासन सरकारी मॉनिटरिंग की बात कह रहा हो लेकिन सूखे राशन के दौरान भी कमोबेश यही हालात हैं। सुखी राशन सामग्री पर भी मनमानी दरें वसूल की जा रही है, जिन पर प्रशासन का कोई नियंत्रण नहीं है। 



मेडिकल स्टोर संचालक नहीं पहुंचा रहे दवाइयां


कर्फ्यू के दौरान मेडिकल स्टोर संचालक भी अपनी सेवाओं को सही ढंग से अंजाम नहीं दे रहे है। उपखंड प्रशासन और जिला प्रशासन ने सामूहिक रूप से अधिकृत नंबर जारी किए हैं, जिन पर फोन करने पर मेडिकल स्टोर दवाइयां डोर टू डोर लेकर जाएंगे लेकिन इनकी स्थिति और भी बदतर है। मेडिकल स्टोर संचालकों को फोन करने पर कुछ तो फोन नहीं उठाते हे ओर कुछ कम राशि की दवाइयां होने पर दवाइयां पहुंचाने में टालमटोल कर रहे हैं और ऐसे में लोगों तक दवाइयां नहीं पहुंच पा रही है जो जान लेवा साबित हो सकती है।

जिम्मेदारों की जागरूक पहल


संक्रमण की पुष्टि होने के साथ ही निंबाहेड़ा नगरपालिका में पार्षद और कांग्रेस के एक युवा नेता के भाई के संक्रमण की जद में आ जाने के बाद पार्षद ने लोगों से अपील की, एसे ही नगरपालिका अध्यक्ष सुभाष शारदा, अधिशासी अधिकारी मुकेश कुमार, पार्षद मनोज पारख सहित कई जिम्मेदार लोग स्वेच्छा से अपनी जांच कराने के लिए पहुंचे और जांच के लिए सैंपल देने के बाद खुद को सोशल डिस्टेंस के दायरों में कैद कर लिया। इससे संक्रमण को फैलने से रोका जा सके जनप्रतिनिधियों और जिम्मेदार लोगों ने मोबाइल के जरिए लोगों तक सुविधाएं पहुंचाने का प्रयास किया और घरों में रह कर रिपोर्ट आने का इंतजार कर रहे हैं। एक और जहां लोग स्वेच्छा से जागरूकता प्रदर्शित कर रहे हैं वहीं दूसरी ओर यह जिम्मेदार लोग जिन पर पूरे प्रशासन के संचालन का जिम्मा है वे संवादहीनता और संवेदनहीनता का परिचय दे रहे है।


जवाबदेही कौन करेगा तय 


उपखंड स्तर पर स्वाधीनता का आलम यह है कि उपखंड अधिकारी पंकज शर्मा खुद किसी का फोन नहीं उठा रहे हैं। मीडियाकर्मियों को जानकारी देने से परहेज कर रहे हैं। वहीं कोविड-19 प्रभारी बनाए गए अधिकारी भी संतोषप्रद जवाब नहीं दे पा रहे हैं। हालात यह है कि विभिन्न कार्यों से जुड़े जिम्मेदार अधिकारी भी फोन उठाने से परहेज कर रहे हैं और जिला प्रशासन के आला अधिकारी मजबूरी बस कई बार फोन करने पर नपे तुले शब्दों में समस्याओं को लेकर टालमटोल का रवैया अपना रहे हैं। इसका खामियाजा आम लोगों को भुगतना पड़ रहा है। सूचनाओं के संप्रेषण के अभाव में लोगों की परेशानियों का निदान नहीं हो पा रहा है।


वर्जन....

दूध पर अधिकतम खुदरा मूल्य अंकित किया गया है। इससे अधिक की राशि किसी भी परिस्थिति में नहीं ली जा सकती। अंकित मूल्य पर ही संबंधित संचालकों को कमीशन दिया जाता है।
बद्रीलाल जाट चेयरमेन चित्तौड़ डेयरी


प्रतिदिन करीब 1200 पैकेट भोजन बनवाया जा रहा है, जो क्वॉरेंटाइन सेंटर और कोरोना रोकथाम की व्यवस्थाओं में लगे कार्मिकों ओर कुछ निराश्रितों को उपलब्ध कराया जा रहा है।
मुकेश कुमार
अधिशासी अधिकारी नगरपालिका निंबाहेड़ा


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