भीलवाड़ा-गूदड़ी के लाल-हंसराज चौधरी, आयुर्वेद के संत को सलाम
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सीधा सवाल । शाहपुरा । भीलवाड़ा जिले के रायला के पास मोतीबोर का खेड़ा स्थित श्रीनवग्रह आश्रम के संस्थापक हंसराज चौधरी को आज कौन नहीं जानता है। वैश्विक परिवेश में भी बात करें तो घर घर में नवग्रह आश्रम व हंसराज चोधरी एक जाना पहचाना नाम हो गया है। कहने को आज दिनांक को इन्ही हंसराज चोधरी का हिन्दू तिथि के अनुसार जन्म दिन है। जन्म दिन हर व्यक्ति का आता है। हर व्यक्ति अपने स्तर पर उसको मनाता भी है पर देश दुनियां में कुछ बिरले ही ऐसे होते है जो जिनका जन्मदिन मनाना न केवल स्वयं को खुशियां देता है वरन देश व दुनियां में उनके दीघार्यु होने की कामना भी की जाती है। हंसराज चोधरी भी ऐसे गिने चुने व्यक्तित्व में आते है।
गुदड़ी के लाल हंसराज चोधरी को जन्म दिन की बधाई तो है ही क्यों कि जन्मदिन आज है तो यह उपक्रम तो करना ही है। परंतु सामान्य जन को उनके व्यक्तित्व व कृतित्व के बारे में थोड़ी बहुत जानकारी हो जाए तो जन्मदिन का उत्साह दुगुना हो जाता है। हंसराज चोधरी मेरे परिचित, मेरे अग्रज, मेरे शुभचिंतक, नवग्रह आश्रम के संस्थापक है, इसलिए यह बखान यहां नहीं कर रहा हूं वरन वास्तव में जो भी व्यक्ति उनको जानता है आज उनके कार्यो को सलाम किये बगैर नहीं रह सकता है।
आज के दौर में हंसराज चोधरी केवल साधारण परिवार में जन्म लेने वाले गुदड़ी के ही लाल नहीं है। सही शब्दों में कहूं तो कोरोना जैसे महामारी के इस वैश्विक दौर में वो अपने आप में आयुर्वेद के संत, सिद्वस्थ, आयुर्वेद को खरल में गोट कर पीने वाले आयुर्वेदाचार्य है।
चोधरी के लिए संत शब्द का इस्तेमाल मैने मेरे विवेक से न करके ब्रह्मलीन विश्व संत के शब्द को ही रेखाकिंत किया है। साकेत नईदिल्ली व कटंगी जबलपुर के प्रज्ञा पीठाधीश्वर महामंडेलश्वर ब्रह्मलीन विश्व संत प्रज्ञानंदजी महाराज ने हंसराज चोधरी को कटंगी में पहली बार देखा तो मानों उनकी बांछे खिल गयी तथा पहली मुलाकात में ही उन्होंने हंसराज चोधरी को आयुर्वेद का संत कह कर पुकारा तथा बाद में वहां पर हजारों लोगों की मौजूदगी में हुए समारोह में भी इसी उपाधि से उनको नवाजा तथा एक सप्ताह की अवधि में ही वो स्वयं श्रीनवग्रह आश्रम आ पहुंचे। आश्रम में उनका क्या पहुंचना मानों उनको यहां स्वर्ग सी अनुभूति हुई। ब्रह्मलीन विश्व संत प्रज्ञानंदजी महाराज ने आश्रम की गतिविधियों का अवलोकन किया तो उनके शब्द थे अब तक 75 देशों की यात्रा कर ली है, देश में कई अखाड़ों व उद्यानों में जाने का अवसर मिला है। नवग्रह आश्रम में जिस कर्मठता, निष्ठा, ईमानदारी, चरक संहिता के सिद्वांतों को लेकर आयुर्वेद को बढ़ावा देने के लिए एक ही परिसर में 418 प्रकार के औषधीय पौधे रोपित कर उनको जीवित रखा जा रहा है तथा उन्हीं से यहां देश व दुनियां से आने वाले रोगियों को जो दवा दी जा रही है, इस स्थान को मैं स्वर्ग भी कहूं तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। उन संत के साथ मोजूद सेवकों ने उनकी मोजूदगी में कहा था कि गुरूजी को इतना प्रसन्न आज तक नहीं देखा।
हंसराज चोधरी के प्रति उन संत क्या आकर्षण रहा, कैसे उन्होंने आश्रम परिसर को स्वर्ग की संज्ञा दी, कैसे उनका मन प्रसन्न हुआ, जाते जाते भी जो आर्शिवाद दे गये थे, उसको याद करते हुए मन भर आता है। 13 जून 2020 को नईदिल्ली में विश्व संत प्रज्ञानंदजी महाराज ने अपना शरीर छोड़ दिया। 15 जून को कटंगी में उनको समाधिस्थ किया गया। प्रज्ञानंद जी महाराज अपने आप में एक परिपूर्ण संत ही नहीं देवपुरूष थे। उनकी बरसों की साधना, नित्य तप, यज्ञ, कटंगी में विश्व के सबसे बड़ा पारद शिवलिंग की स्थापना, प्रज्ञा मिशन की स्थापना, राजसूय महायज्ञ सहित उनके कई ऐसे कार्य वो कर गये जिनका लंबा चौड़ा इतिहास है जिस पर कभी बाद में चर्चा करेगें।
अभी में बात कर रहा था ब्रह्मलीन विश्व संत प्रज्ञानंदजी महाराज की, जो फरवरी 2020 में नवग्रह आश्रम आकर वापस यहां से नईदिल्ली प्रस्थान कर गये। प्रस्थान करने के समय जिस आसन्न पर वो स्वयं बिराजते थे, वो आसन्न ही हंसराज चोधरी को सप्रेम भेंट कर गये तथा कहा कि अब इस का उपयोग करना। यह क्यों, कब व केसे प्रकरण घटित हो गया कोई नहीं जान पाया। किसी संतक का अपना आसन्न देना बहुत ही बड़ी बात है। इसके अलावा उन संत को महामंडलेश्वर की उपाधि थी जिसमें उनको छड़ी रखना अनिवार्य होता है, जाते समय वो छड़ी भी यहां पर ही भूल गये या जानबूझ कर छोड़ गये यह कहा नहीं जा सकता है। छड़ी को तो बाद में नईदिल्ली उनके साकेत आश्रम में उनके पास सुरक्षित पहुंचा कर उनसे निवेदन किया कि इसे तो आप ही स्वीकार करों महाराज। दूसरी सबसे बड़ी बात जो कहना चाहता हूं कि आश्रम से रवाना होते समय उन्होंने हंसराज चोधरी से निवेदन किया कि अब वो प्रति तीन चार माह के अंतराल में यहां आना चाहेगें, इसके लिए मेरे लिए यहां विश्राम स्थल जरूर बना देना। यह विश्राम स्थल उसके अगले दिन से ही बनना प्रांरभ हो चुका है, अभी भी कार्य चल रहा है हालांकि वो संत अब समाधिस्थ हो चुके है। एक बात वाहन में बैठते हुए भी उन्होंने कही थी आश्रम मुझे विशाल क्षेत्रफल में आयुर्वेद का देश का सबसे बड़ा रिसर्च सेंटर दिख रहा है।
केदारनाथ त्रासदी के प्रत्यक्ष गवाह रहे हंसराज चोधरी की वहां पर मुख्य पुजारी से वहां की स्थानीय भाषा में हुई अंतिम बात, वहां से जल प्लावन के बीच में ही प्रस्थानगी के समय मिले एक अज्ञात संत का सिर पर हाथ रखकर आर्शिवाद देकर घर सुरक्षित पहुंचने का मार्ग बताना, देश के दर्जनों संत, महंतों, अखाड़ों के पीठाधीश्वर, जैन मुनियों, किन्नर समुदाय के प्रमुख लोगों, देश की सामाजिक सेवा के क्षेत्र में काम करने वालों की उनको समय समय पर मिलने वाली प्रेरणा से हंसराज चोधरी हमेशा दुगने उत्साह से कर्म करते दिखे है।
उपरोक्त प्रसंगों का जिक्र करना जरूरी होने से किया गया पर हंसराज चोधरी के व्यक्तित्व व कृतित्व के बारे में लिखा जाए या उनकी बायोग्राफी तैयार करने का प्रयास किया जाए तो भी लंबा समय चाहिए। उनके जीवन में घटित घटनाओं को ही संकलित किया जाए तो भी यह साबित हो ही जाता है कि वो सेवा व आयुर्वेद के माध्यम से रोगियों के उपचार में सिद्वस्थ हो चुके है। उनका विकल्प शायद ही कोई मिले। कुल मिलाकर लिखे को भाव ही समझना। मेरा यह लिखना कोई प्रचार प्रसार के लिए नहीं है।
अब बात करते है परिवार की तो हंसराज चोधरी को संस्कार तो पिता स्व कन्नीरामजी सगड़ोलिया से शुरू से ही मिले। मां सोहनबाई का ममत्व व मार्गदर्शन आज भी उनके साथ पग पग पर चलता है। मां का जिक्र आया तो एक बात कहना चाहुंगा कि मां जब भी आश्रम आती है तो वहां किसी भी रोगी को कोई परेशानी देख कर तुंरत उसका समाधान स्थायी रूप् से करवाती है ताकि वो समस्या दुबारा न आए। उनका आर्शिवाद सभी को सदा मिलता है। चोधरी के परिवार के सदस्यों की एकजुटता भी हंसराज चोधरी का सबसे बड़ा संबल है।
हंसराज चोधरी आश्रम के माध्यम से केंसर सहित कई रोगों का उपचार करने के लिए औषधी देते है। आज आश्रम में लंबा चौड़ा परिवार है जिसमें आधा दर्जन चिकित्सक सहित रिसर्च टीम व स्वयंसेवकों की टीम भी शामिल है। अपने कर्म के प्रति निष्ठ हंसराज चोधरी चाहे जिस भी परिस्थिति में हो कभी भी नकारात्मक भाव नहीं देखा। हर बार सकारात्मकता से रोगी से बात कर उसको प्रोत्साहित करना, आयुर्वेद औषधियों के 418 प्रकार के पौधों की सार संभाल करना, उनसे बात करना, उनको विषम वातावरण में भी यहां पर जिंदा रखना, दिन भर स्वाध्याय, अध्ययन करते रहना, जीवन में रंगकर्मी के गुणों का प्रकट करना, लंबे चौड़े क्षेत्रफल वाले आश्रम में पग पग पर क्या हो रहा है, इसका ध्यान रखना, नित नये शोध कर रोगोपचार करना, एलोपेथी से रिजेक्ट होकर आने वाले रोगी को चेंलेंज के रूप् में स्वीकार कर उसका उपचार करना, आश्रम परिसर में हर समय आनन्द उत्सव का माहौल बनाये रखना, छोटे बड़े को आदर देना, समय निकाल कर थियेटर कर्म को करना, कविता गीत लिखना, देश व दुनियां से पौधों का संग्रह कर आश्रम में उनको रोपित करना, समय समय पर संतों की शरण में पहुंच जाना, प्रतिदिन गौसेवा कर उनका नित्यकर्म हो चुका है। अब देशी नस्ल की गौवंश का देश का पहला गौसंवर्धन केंद्र स्थापित करना जहां अभी 14 नस्लों की 100 गाये संग्रहित हो चुकी है। उनका कहना है कि देश में 24 नस्ले है देशी गायों की सभी गायें आश्रम में होगी, जो भी देश में एक नवाचार होगा।

अपने कर्म को समर्पित, निष्ठावान, शोधकर्ता, जिज्ञासु, सकारात्मकता का संदेश प्रवाह करने, 16 भाषाओं के ज्ञाता, 418 औषधियों के पौधों की जानकारी रखने वाले, देश व दुनियां के हजारों लोगों को रोगमुक्त करने वाले, भारत को केंसर मुक्त बनाने का संकल्प लेने वाले, हर रोज सेवा कार्य में प्रगति करते रहने वाले श्री नवग्रह आश्रम के संस्थापक हंसराज चोधरी के आज जन्मदिन पर शुभकामनाएं व बधाई।
एक बात ओर, आश्रम के केंसर सैनिक सुरेंद्र सिंह आश्रम को सन्यासियों का आश्रम कहने से गुरेज करते हुए कहते है कि यह तो आनंदालय है, जो आता है वो ही आनंद प्राप्त करता है। आप भी आये आनंद प्राप्त करें।


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