चित्तौड़गढ़ / निंबाहेड़ा - शिक्षक प्रो एक्टिव बन राष्ट्र रक्षक की भूमिका निभाएं
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चित्तौड़गढ़ - छह टन से ज्यादा खैर की लकड़ी पकड़ी, निगरानी के दौरान वन विभाग की टीम का पैंथर से हुआ सामना

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डॉ रवींद्र कुमार उपाध्याय
सीबीईओ, निम्बाहेड़ा

सीधा सवाल। निम्बाहेड़ा। कोरोना संक्रमण की राष्ट्रीय आपदा और भीषण मानवीय त्रासदी के मध्य शिक्षक समाज को अब ग्रीष्मावकाश में घर बैठकर आराम करने का मोह छोड़कर कोरोना वॉरियर्स के रूप में प्रोएक्टिव अर्थात अत्यधिक सक्रिय एवं उग्र बनकर राष्ट्र निर्माता के साथ-साथ राष्ट्र रक्षक की भूमिका का निर्वाह करना चाहिए। आज कोरोना संक्रमण की भयावह स्थिति में जहां चिकित्सा कर्मी अपनी जान जोखिम में डालकर कार्य कर रहे हैं, वहीं पुलिसकर्मी भी लॉक डाउन गाइडलाइंस की पालना में घर परिवार ऑफिस छोड़कर भरी दोपहरी में सड़कों पर तप रहे हैं, तो आंगनवाड़ी कार्यकर्ता से लेकर शिक्षक समाज तक कोरोना से लड़ाई लड़ रहे हैं। आज गांव- गांव, ढाणी - ढाणी और मोहल्लों तक फेल चुके कोरोना संक्रमण की श्रंखला को तोड़ने के लिए शिक्षकों को प्रोएक्टिव अर्थात अति सक्रिय एवं क्रियाशील बनकर समाज में स्वयं को प्रस्तुत करना होगा। राजकीय कार्मिकों में शिक्षकों की संख्या अधिक एवं प्रभावी होने से कोरोना वारियर्स के रूप में शिक्षको की भूमिका महत्वपूर्ण हो गई है। शिक्षक आज भी हर गांव, ढाणी, गली, मोहल्ले आदि में अपनी प्रभावी उपस्थिति रखता है। अतः शिक्षक को चाहिए कि वह अपने मोबाइल व सोशल मीडिया का प्रयोग एक वॉर रूम के रूप में कर एक कोरोना वारियर्स के रूप में अपना महत्वपूर्ण योगदान दे।
शिक्षक अपने मोबाईल से वर्क फ्रॉम होम के तहत कोरुना उपचार को लेकर ग्रामीणों में व्याप्त भय, संशय एवं नकारात्मकता को खत्म करें। आज स्थिति यह है कि ग्रामीण व्यक्ति कोरोना संक्रमण के बाद की असत्य   स्थितियों की भयावह कल्पना करके डरा जा रहा है और बुखार खांसी सर्दी झुकाम होने पर भी उपचार के लिए घर से बाहर नहीं निकल रहा है। वह भयभीत हो कर बैठा है कि कोरोना से मृत्यु होने के बाद उसकी लाश भी हर कोई जला देगा, उसकी अस्थियों का भी पता नहीं चलेगा, उसे ना जाने कहां दफन कर दिया जाएगा, मरने के बाद उसकी धार्मिक जातीय परंपराओं, रीति रिवाजों का पालन नहीं किया जाएगा। ऐसे अनेक काल्पनिक भय के कारण वह बीमार ग्रामीण हॉस्पिटल में इलाज नहीं कराना चाहता है। यहां तक कि वह घर आए हुए सरकारी चिकित्सक या स्वास्थ्यकर्मी से भी वार्ता करने के लिए अपने घर के दरवाजे नहीं खोलता है। यह मेरा खुद का आंखों देखा अनुभव है। जबकि आज गांव के लगभग हर घर में सर्दी खांसी जुकाम बुखार के मरीज हैं, जिनका समुचित उपचार समय पर होना जरूरी है।
ग्रामीण बीमार घर के बाहर इसलिए नहीं निकल रहा है क्योंकि उसकी सर्दी, खांसी, जुकाम और बुखार को कोरोना मानकर उसे सरकारी हॉस्पिटल में भर्ती करा दिया जाएगा, जहां का अनुभव उसे पूर्व में बहुत कड़वा रहा है। ग्रामीणों के पूर्व के कड़वे अनुभवों के विपरीत आज पूरा चिकित्सा विभाग दो मोर्चों पर कोरोना से संघर्ष कर रहा है। एक ओर चिकित्साकर्मी हॉस्पिटल में कोरोना रोगियों का इलाज कर रहे हैं तो दूसरी ओर डॉक्टर कंपाउंडर एवं नर्स की टीमें घर-घर जाकर कोरोना दवाइयों के किट मुफ्त में वितरित कर रहे हैं , साथ ही सर्दी खांसी जुकाम बुखार आदि की दवाइयां भी घर घर जाकर निशुल्क दे रहे हैं ।
अतः मेरा शिक्षक साथियों से विनम्र अनुरोध है कि वह भयावह राष्ट्रीय आपदा के मध्य अपने गांव ढाणी गली मोहल्ले के परिवारों मैं मोबाइल से संपर्क कर बीमार व्यक्तियों की सूची बनाएं और उनके नाम पते की सूची चिकित्सा विभाग को सौंप दें ताकि चिकित्सा विभाग चिकित्सक , एएनएम, आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं आदि के माध्यम से उनके घरों तक निशुल्क दवाइयां भेज सके और संभव होने पर उन्हें प्रेरित कर उनका कोविड टेस्ट कर उनका समुचित उपचार करा सके।
इसके अलावा शिक्षकों को चाहिए कि वह अपने फेसबुक टि्वटर इंस्टाग्राम अकाउंट आदि सोशल मीडिया के माध्यम से समाज राष्ट्र में कोरोना महामारी को लेकर फैलाई जा रही नकारात्मकता, नफरत और भय के वातावरण को समाप्त करें। शिक्षक को चाहिए कि वह अपने सोशल मीडिया को एक वार रूम में परिवर्तित कर दें और ग्रीष्मावकाश में पूरे दिन घर बैठकर सरकार द्वारा उपलब्ध कराई जा रही सुविधाओं का प्रचार प्रसार करें और हॉस्पिटल में ठीक हो रहे मरीजों की संख्या का आंकड़ा समाज के सामने प्रस्तुत करें। शिक्षक को चाहिए कि वह अपने लेखन, कार्य, सुझाव आदि के माध्यम से समाज में सकारात्मकता का प्रचार करें और बताएं कि आज केंद्र सरकार और राज्य सरकार कोरोना मरीज की सुविधाओं के लिए अपना सारा बजट कोरोना संक्रमण को रोकने में झोंक रही है। पहली बार किसी बीमारी का निशुल्क उपचार करने के लिये सरकारी टीमें घर-घर जाकर बीमार व्यक्तियों को निशुल्क दवाइयां उपलब्ध करा रही है। यह आजाद भारत के इतिहास में पहली बार हो रहा है कि पूरा का पूरा प्रशासन शहरों और गांवो से होता हुआ अब मरीज के घर घर तक पहुंच रहा है। यह बहुत बड़ी बात है। शिक्षकों को चाहिए कि राजनीतिक, वैचारिक और वर्ग संघर्ष के नाम पर केंद्र व राज्य सरकारों को दोषी ठहराने वाले लोगों के दुष्प्रचार के विरुद्ध अपने सोशल मीडिया के वॉर रूम से केंद्र व राज्य सरकार द्वारा किए जा रहे प्रयासों और उपलब्धियों को सामने लाए। शिक्षकों को चाहिए कि वे मल्टीमीडिया के द्वारा ठीक हो रहे मरीजों के अनुभव साझा करें। प्रशासन द्वारा कोरोना संक्रमण की श्रंखला को तोड़ने की गाइडलाइन की पालना के लिए समाज को प्रेरित करे।
यहां मैं एक ऐसी मुस्लिम महिला शिक्षिका का बिना नाम के जिक्र करना चाहूंगा जो अपने घर में कोरोना संक्रमित पुत्री और रमजान के रोजा इबादत के बावजूद विद्यालय जाकर अपने राजकीय कर्तव्यों के पालन हेतु कार्य करना चाहती है। मुझे पूरा विश्वास है कि ऐसे समर्पित शिक्षकों के होते हुए भारत कभी भी कोरोना से पराजित नहीं हो सकता है। कोरोना हारेगा और भारत जीतेगा। इसी दृढ़ विश्वास के साथ शिक्षकों को प्रोएक्टिव बन कर राष्ट्र निर्माता की भूमिका के बाद अब राष्ट्र रक्षक की भूमिका का निर्वाह करना चाहिए और कोरोना से जंग में अपने सोशल मीडिया को एक बार रूप में प्रयोग करना चाहिए ।
आने वाले समय में भारत के विश्व गुरु बनने के बाद जब कोरोना संक्रमण को परास्त करने का इतिहास लिखा जाएगा तब चिकित्सा कर्मियों , पुलिसकर्मी, आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं के साथ-साथ प्रशासनिक अधिकारियों के कौशल और शिक्षकों की भूमिका को भी स्वर्णिम अक्षरों में लिखा जाएगा।


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