डेस्क / नई दिल्ली - जब भारत ने किया परमाणु विस्‍फोट और जी-8 ने लगाए आर्थ‍िक प्रतिबंध
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चित्तौड़गढ़ - छह टन से ज्यादा खैर की लकड़ी पकड़ी, निगरानी के दौरान वन विभाग की टीम का पैंथर से हुआ सामना

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डॉ. मयंक चतुर्वेदी

एजेंसी। नई दिल्ली। इतिहास की हर तारीख हमें प्रेरणा और सबक देती है। हर साल जब यह तारीख सामने आती है, तब वह किसी व्‍यक्‍ति, समूह, समाज और देश को यह सोचने पर जरूर विवश करती है कि मैं वह तारीख हूं, जिसमें तुम्‍हारा उत्‍थान या पतन हुआ था। अब आगे क्‍या करना है, कहां जाना है? अपनी मंजिल तय करो।
इतिहास के पन्‍नों में दर्ज इन्‍हीं तारीखों में 12 जून भी है। जिस दिन दुनिया के शक्‍तिशाली देशों ने भारत की बढ़ती परमाणु ताकत पर अपनी नाराजगी जाहिर करने के बाद आर्थ‍िक प्रतिबंध लगाने की घोषणा कर दी थी। आगे भारत के संदर्भ में यह दिन इतना आत्‍म गौरव और स्‍वाभीमान को पुष्‍ट करनेवाला होगा, यह तो किसी ने सोचा ही नहीं था, वे आर्थ‍िक प्रतिबंध लगा रहे थे और हम आर्थ‍िक रूप से सम्‍पन्‍न होने के लिए आत्‍मनिर्भरता की ओर बढ़ चले थे।
बात वर्ष 1998 की है, जब 11 से 13 मई के बीच तत्‍कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्‍व में देश में 'पोखरण-2' फिर से दोहराया गया। इसके तहत पांच परमाणु बमों का परीक्षण किया गया था। यह देश का दूसरा परमाणु परीक्षण था। इसके तुरंत बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री वाजपेयी ने भारत को पूर्णतया रूप से परमाणु संपन्न देश घोषित कर दिया।
इन परीक्षणों से नाराज हो कई देशों ने भारत पर कड़े प्रतिबंध लगा दिए। जिनमें सबसे ऊपर थे जी-आठ के देश- कनाडा, अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी, जापान, इटली व रूस। इन्‍होंने घोषणा कर दी कि वे भारत को ऋण उपलब्‍ध नहीं कराएंगे। इस पर वाजपेयी ने संसद में दिए अपने भाषण से विश्‍व भर के देशों को संदेश दिया कि "ये भारत बदला हुआ भारत है, दुनिया से आंख मिलाकर और हाथ मिलाकर चलना चाहता है। किसी प्रतिबंध से झुकेगा नहीं और शांति और सुरक्षा के लिए परमाणु हथियारों का इस्तेमाल करेगा।"
देश में हुए इस परमाणु परिक्षण के बाद जैसे पूरे विश्‍व में भारत को देखने का नजरिया अब बदलने लगा था। यह सर्वविदित है कि जब दुनिया के शक्‍त‍िशाली देशों ने भारत पर अपने आर्थ‍िक प्रतिबंध थोपे तो विश्‍व भर में रह रहे भारतीय, वाजपेयी सरकार की मदद करने आगे आ गए थे। इसी के साथ यह बात भी इतिहास में दर्ज हो गई कि वाजपेयी के कार्यकाल में लगाए गए आर्थ‍िक प्रतिबंधों के बावजूद भारत तेजी के साथ अपने उन्‍हीं भारतीय नागरिकों की दम पर आगे बढ़ता रहा जो दुनिया के किसी भी कौने में रह रहे हैं, लेकिन उनका दिल सदैव भारत के लिए धड़कता है।
यहां उत्‍साह से भर देनेवाली बात यह है कि जब जी-8 के देश हमारे निर्यात पर प्रतिबंध लगा रहे थे, हमें आर्थ‍िक रूप से कमजोर करने का प्रयास कर रहे थे। तब भारत तेजी के साथ उठा खड़ा हो रहा था। उनके इन प्रतिबंधों का सकारात्‍मक असर यह हुआ कि भारत की शक्‍ति कई क्षेत्रों में एक साथ उभरकर सामने आई। उसकी क्षमता को पूरी दुनिया ने स्‍वीकारा। आईटी के क्षेत्र में भारत की क्षमताओं को लेकर नयी समझ सामने आने से भारतीय बौद्ध‍िकता पर वैश्‍विक निर्भरता बढ़ी, जिनमें सबसे अधि‍क यही जी-8 के देश रहे।
इन आर्थ‍िक प्रतिबंधों का असर यह भी हुआ कि वाजपेयी ने सड़कों के माध्यम से भारत को जोड़ने की योजना बनाई। उन्होंने चेन्नई, कोलकाता, दिल्ली और मुंबई को जोड़ने के लिए स्वर्णिम चतुर्भुज सड़क परियोजना लागू की। ग्रामीण अंचलों के लिए प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना सामने आई। उनके इस निर्णय ने देश के आर्थिक विकास को तेजी के साथ गति मिली।
इन देशों का प्रतिबंध भारत में निजीकरण को बढ़ावा-विनिवेश की शुरुआत करने का कारण बना। भारत में संचार क्रांति लाने का श्रेय यदि राजीव सरकार को दिया जाता है तो इसी आर्थ‍िक प्रतिबंधों के बीच उसे आम लोगों तक पहुंचाने का काम वाजपेयी सरकार ने किया।1999 में भारत संचार निगम लिमिटेड (बीएसएनएल) के एकाधिकार को समाप्‍त कर नई टेलिकॉम नीति लागू की गई। आज उसके सुखद परिणाम हम सभी के सामने हैं। विकसित देशों से कई गुना सस्‍ती टेलिकॉम सुविधा भारत में है।
छह से 14 साल के बच्चों को मुफ़्त शिक्षा देने का सर्व शिक्षा अभियान भी इसी समय शुरू हो सका। आतंरिक सुरक्षा के लिए सख़्त कानून पोटा कानून जोकि बेहद सख़्त आतंकवाद निरोधी कानून था, वह भी देश में कड़ाई से लागू किया गया। ''हिन्द देश के निवासी सभी जन एक हैं रंग रूप वेष भाषा चाहे अनेक हैं'' के आधार पर इसी समय यह संभव हो सका कि एचडी देवगौड़ा सरकार ने जातिवार जनगणना कराने को जो मंजूरी दी थी, उसे बदला गया। मंडल कमीशन के प्रावधानों को लागू करने के बाद देश में पहली बार जनगणना 2001 में होनी थी, लेकिन वाजपेयी सरकार ने इस निर्णय को पलट दिया था।
कहना यही है कि श्रेष्‍ठ नेतृत्‍व हो तो बुरी सी बुरी परिस्‍थ‍ितियां भी श्रेष्‍ठता को धारण करने में सफल हो जाती हैं, वे अवसर में बदल जाती हैं। दुनिया के शक्‍तिशाली देशों ने सोचा था कि भारत ऐसे नाजुक वक्‍त में उनके सामने अर्थ के लिए झुकेगा, किंतु इतिहास आज हमें यही बता रहा है कि भारत की जिजीविषा संकट के समय और प्रखरता के साथ दुनिया के सामने आई है और जिसका परिणाम आज का सशक्‍त भारत है। भारत 2.94 ट्रिलियन डॉलर के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के साथ विश्‍व की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थ व्‍यवस्‍था बन चुका है।
वर्तमान में प्रधानमंत्री नरेन्‍द्र मोदी चाहते हैं कि भारत पांच ट्रिलियन की अर्थव्यवस्था का अपना लक्ष्‍य 2025 तक हासिल करे। आज इसी उद्देश्‍य के लिए सभी यत्‍न जारी हैं। कुल निष्‍कर्ष यही है कि श्रेष्‍ठ नेतृत्‍व ने 12 जून की तारीख के जी-आठ देशों द्वारा किए निर्णय को भारत के संदर्भ में आत्‍मनिर्भरता में बदल दिया था और आज भी अच्‍छा यही है कि आत्‍मनिर्भरता की दिशा में हमारे प्रयास सतत जारी हैं।


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