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शिकारी और शिकार पुस्तक में है विवरण, महाराणा मेवाड़ भूपालसिंह ने किया था शिकार, सीधा सवाल को मिला बाघ के शिकार का दुर्लभ फोटो
(अखिल तिवारी)
सीधा सवाल। चित्तौड़गढ़। वन विभाग के उच्च अधिकारी बस्सी सेंचुरी को टाइगर कॉरिडोर के रूप में देख रही है। इसको लेकर तैयारियां करने के निर्देश भी दिए हैं। एक समय था जब चित्तौड़गढ़ में काफी संख्या में बाघ हुआ करते थे। इसका विवरण भी एक पुस्तक में मिला है। हथनी ओदी पर तत्कालीन महाराणा मेवाड़ भूपालसिंह ने टाइगर का शिकार किया था। इसके लिए वे यहां आए थे। सीधा सवाल ने इसे लेकर विशेषज्ञों से बात की। इसमें महाराणा मेवाड़ के बाघ का शिकार करने की पुष्टि हुई है। साथ ही जिस बाघ का शिकार किया गया था, उसका दुर्लभ फोटो भी पुस्तक से मिला है। ऐसे में यह कहा जा सकता है कि चित्तौड़गढ़ जिले में भैंसरोड़गढ़ एवं बस्सी सेंचुरी के अलावा सीतामाता सेंचुरी टाइगर कॉरिडोर के लिए बेहतर विकल्प हो सकता है।
जानकारी के अनुसार वन विभाग बस्सी और सीतामाता में टाइगर कॉरिडोर की संभावनाओं को तलाश रही है। अचानक वन विभाग का यह निर्णय सोच से परे था। ऐसे में सीधा सवाल की टीम ने वन विभाग के अधिकारियों से लगातार संपर्क रखा। इसमें यह बात सामने आई कि चित्तौड़गढ़ जिले में विशेष तौर पर दुर्ग के पार्श्व भाग एवं बस्सी। सेंचुरी क्षेत्र में बाघ 1952 तक थे। वहीं एक प्रसंग ऐसा भी सामने आया, जिसमें सन 1933 में तत्कालीन महाराणा मेवाड़ भूपालसिंह चैत्र मास के शिकार के लिए लिए चित्तौड़गढ़ आए थे। यहां एक विशाल बाघ का शिकार किया था। बाघ के शिकार के लिए काफी मशक्कत करनी पड़ी थी। घनी झाड़ियां और पहाड़ी क्षेत्र में बाघ छिप गया था। ग्रामीणों ने बाघ को झाड़ियों से बाहर निकालने के लिए हाका लगाया था।
घायल शेर का हाथी पर आक्रमण
लेखक धायभाई तुलसीनाथसिंह तंवर की पुस्तक शिकारी और शिकार में हथनी ओदी पर बाघ के शिकार का उल्लेख है। धायभाई तुलसीनाथसिंह तंवर महाराणा मेवाड़ के शिकार प्रबंधन के साथ अन्य सेवा का कार्य देखते थे। उन्होंने अपनी पुस्तक के 13वें अध्याय 'घायल शेर का हाथी पर आक्रमण' शीर्षक से यहां के शिकार की जानकारी दी है। पेज संख्या 78 से 84 तक यहां पर किए शिकार का वर्णन है। यह पुस्तक उदयपुर में रखी हुई है। इस पुस्तक में महाराणा मेवाड़ के कई स्थानों पर किए शिकार का उल्लेख है।
हथनी नाम की शिकारगाह का उल्लेख
पुस्तक के 13वें अध्याय में लेखक ने शिकार का पूरा वर्णन किया है। इसमें लिखा है कि हथनी नाम की शिकारगाह जो चित्तौड़गढ़ से 5 मील पूर्व में स्थित है। हाका करने पर शेर मूल के सामने आया और महाराणा ने गोली चलाई। इसमें शेर जख्मी होकर पास में ही स्थित खोला नामक खादरे में चला गया था।
वर्जन....
बाघ का शिकार वह भी चट्टानी क्षेत्र में और बाघ पहले ही घायल हो चुका है। ऐसे में बाघ असमान्य रूप से आक्रमक होता है। यह बात लेखक ने भी बाघ की हरकत में स्पष्ट की। साथ ही यह भी पता चलता है कि मेवाड़ क्षेत्र में विशेष कर चित्तौड़ के निकट बस्सी के जंगलों में 1930-40 के दशक तक बाघ अच्छी-खासी संख्या में मौजूद थे। इससे यह स्पष्ट होता है कि बाघों के लिए मेवाड़ के वन क्षेत्र प्राकृतिक आवास के साथ ही जीवन की पूर्ण प्रत्याशा प्रस्तुत करते हैं। ऐसे में मुकुन्दरा और दर्रा के क्षेत्र से यहां तक एक बाघ विकास स्थल के रूप में कोई योजना आरम्भ होती है तो मेवाड़ के वन क्षेत्रों के विकास औैर विस्तार के लिए अत्यन्त लाभदायक कदम होगा।
डॉ. विवेक भटनागर, अधीक्षक, शोध केन्द्र, प्रताप गौरव केन्द्र ‘राष्ट्रीय तीर्थ’ एवं इतिहासकार