प्रतापगढ़ / छोटीसादड़ी - जान हथेली पर रख यहां के किसान खेतों में उगाते हैं काला सोना, दिन-रात करते रखवाली
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प्रतापगढ़ / छोटीसादड़ी - अनूठा इतिहास समेटे है स्वर्ण नगरी की हवेली, रियासत काल में था समृद्धि और व्यापार का केंद्र

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अफीम पौधों पर आए फूल, सुरक्षा के लिए बढ़ी चिंता, अब तीन महीने तक खेतों पर ही गुजरेंगे किसानों के दिन-रात

सीधा सवाल। छोटीसादड़ी। क्षेत्र में इन दिनों अफीम की फसल पर फूल भी आने लगे हैं। कुछ समय में इन पर डोडा भी आने लगेगा। फसल बढ़ने के साथ ही किसानों के माथे पर इनके देखरेख को लेकर चिंता की लकीरें बढ़ने लगी हैं। अब किसानों को फसल की सुरक्षा में दिन और रात खेतों में ही गुजारने पड़ेंगे। किसान अपनी फसल को प्राकृतिक प्रकोप, मवेशियों और पक्षियों से सुरक्षा करने में भी जुट गया है। काला सोना कही जाने वाली इस फसल को किसान कड़ी मेहनत से पाल-पोसकर बड़ी करते हैं। कई किसानों ने तो खेतों पर झोपडिय़ां बना ली हैं, जहां रहकर दिन-रात रखवाली कर रहे हैं। अफीम की फसल पर फूल और डोडा आते ही अफीम तस्करों से भी किसानों को खतरा बढ़ जाता है। हालांकि मवेशियों और प्राकृतिक प्रकोप से भी खतरा कम नहीं होता है। किसानों ने मवेशियों से फसल की सुरक्षा के लिए तारबंदी, लोहे की जालियां लगा दी हैं। प्राकृतिक प्रकोप से बचाव के लिए अफीम की फसल के चारों तरफ मक्का की बुवाई करते हैं। इससे शीतलहर और पाले का असर मक्का की फसल पर कम हो जाता है। यह अफीम किसानों को अच्छा पैसा तो दिलाती ही है साथ ही जो किसान समाज है उसमें उसका रुतबा भी बढ़ाती है। यहां माना जाता है कि जिसकी अफीम की फसल होती है उसका किसान समाज में एक अलग ही पहचान और अपना एक अलग ही रुतबा होता है।


लुवाई-चिराई का दौर शुरू होते ही दस्तक देने लगेंगे तस्कर

बता दें कि प्रतापगढ़ जिला पूरे देश में काले सोने की तस्करी के लिए जाना जाता है। यहां मौसम की अनुकूलता और अच्छी पैदावार के चलते अफीम की फसल का अच्छा उत्पादन होता है। ऐसे में अफीम और डोडा चूरा तस्करी का अवैध कारोबार भी शुरू हो जाएगा। इस वर्ष अफीम की फसल की अच्छी पैदावार होने की आस लगाए बैठे मारवाड़, पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, गुजरात और महाराष्ट्र के तस्कर स्थानीय तस्करों से संपर्क साध रहे हैं। लुवाई-चिराई का दौर शुरू होने के बाद तस्कर काला सोना यानी अफीम अवैध रूप से अपने क्षेत्र में ले जाते हैं। किसान तीन महीने फसल पूरी नहीं होने तक खेतों में ही जुटे रहते हैं।

डोडा निकलते ही मां काली की पूजा के साथ इकट्ठा होगा अफीम का दूध

अफीम के पौधों पर सफेद फूल आने से किसानों में हर्ष छाया हुआ है। फूल खिलने के बाद अब कुछ दिनों में फसल पर डोडा निकलेगा। इस पर किसान आने वाले कुछ दिनों में विधि-विधान से मां काली की पूजा अर्चना कर डोडे पर चीरा लगाकर अफीम का दूध इकट्ठा करने में जुट जाएंगे। वहीं इस बहुमूल्य फसल को बचाने के लिए किसान इन दिनों खेत में फसल की जंगली जानवरों से रखवाली के लिए रतजगा कर रहे हैं।


जंगली जानवारों से नहीं यहां चोरों से है खतरा

वर्तमान में किसान जंगली जानवरों द्वारा नुकसान पहुंचाए जाने से इतना चिंतित नहीं है जितना अफीम चोरों से है। कई वारदातें ऐसी भी हुई हैं जिनमें यह सामने आया है कि अफीम किसानों ने अफीम खेतों से लाकर अपने घर में रखे और किसानों पर ही हमला करके सीधे-सीधे अफीम लूट ली गई बअफीम की चोरी और अफीम की लूट किसान के लिए बड़ी चिंता का विषय है। यही वजह भी है कि किसान अपनी जान पर खेलकर अफीम की फसल को उगा रहा है। क्योंकि अन्य फसलों में इतना मुनाफा और मान-सम्मान नहीं मिलता जितना अफीम की फसल में मिलता है।



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