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सीधा सवाल। चित्तौड़गढ़। शराब की बिक्री से प्रदेश की सरकार को राजस्व की प्राप्ति होती है लेकिन इस राजस्व की आड़ में काली कमाई का खुला खेल खेला जा रहा है। एक लाइसेंस की दुकान की स्वीकृति जारी होने के बाद उसके सहारे अवैध रूप से आधा दर्जन से अधिक ब्रांच का संचालन किया जा रहा है जो पूरी तरह से अवैध है। वहीं दूसरी ओर आबकारी महकमे के अधिकारी कार्रवाई के नाम पर छोटी-छोटी कार्रवाइयों को अंजाम देते हुए केवल खाना पूर्ति करते प्रतीत हो रहे हैं। निंबाहेड़ा उपखंड क्षेत्र में लाइसेंसी दुकानों से चार गुना ज्यादा अवैध ब्रांच का संचालन किया जा रहा है। जिन ग्रामीण क्षेत्रों में लाइसेंस धारी दुकानदार नहीं है वहां अवैध रूप से ब्रांच चलाकर शराब का खेल खेला जा रहा है। इस पूरे मामले में बड़ी बात यह है कि इन अवैध रूप से संचालित शराब ब्रांच पर भारी मात्रा में नकली शराब भी बेची जा रही है जिसे लेकर आबकारी और पुलिस महक में के जिम्मेदार आंखें मूंद कर बैठे हुए हैं। अंदर खाने चर्चा यह भी है कि सभी जिम्मेदारों की मोटी कमाई का जरिया यह अवैध ब्रांच का खेल बना हुआ है और खुलेआम चल रही शराब बेचने की अवैध ब्रांच ना तो जिम्मेदारों को दिखाई दे रही है और ना ही इन पर कोई कार्रवाई हो रही है। जिले के आला अधिकारी भी यह मान रहे हैं कि ब्रांच का संचालन अवैध है और कार्रवाई के निर्देश दिए गए हैं लेकिन कार्रवाई कब होगी इसका इंतजार खत्म होने का नाम नहीं ले रहा है। ऐसी स्थितियों को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि शराब के इस कारोबार को राशन की दुकानों पर खुलेआम बेचने की स्वीकृति दी जानी चाहिए जिससे कि गली, चौराहे, नुक्कड़ पर लगने वाली दूध, सब्जी और परचून की सामग्री की तरह शराब भी सर्व सुलभ रूप से उपलब्ध हो सके क्योंकि अवैध रूप से संचालित होने वाले इस कारोबार को लेकर जब कोई कार्रवाई नहीं की जा रही है तो फिर नियमों का हवाला देकर छोटी-छोटी कार्यवाही करने का औचित्य ही प्रतीत नहीं होता है।
पुलिस का सूचना तंत्र फ़ैल, ब्रांच पास
आमतौर पर मूखबीर और सूचना तंत्र के जरिए बड़ी-बड़ी कार्रवाई करने का प्रेस नोट जारी करने वाली पुलिस की साख पर भी शराब की अवैध रूप से संचालित होने वाली ब्रांच बट्टा लगा रही है। हालत यह है कि पुलिस के बीट अधिकारियों से लेकर मुखबिर तंत्र को मानो अवैध रूप से संचालित होने वाली शराब बेचने की अवैध ब्रांच दिखाई नहीं दे रही है। इस पूरे मामले में पुलिस का मुखबिर तंत्र भी फेल साबित हो रहा है। हालत यह है कि छोटे-छोटे झगड़ों की सूचना में पुलिस तत्काल पहुंच जाती है लेकिन हर ग्राम पंचायत स्तर पर खुली शराब की अवैध ब्रांच को लेकर पुलिस का नहीं पहुंच पाना खाकी के ईमान को दागदार करने की कवायद प्रतीत हो रहा है। ऐसे में खाकी पूरी तरह से जहां फेल साबित हो रही है वहीं दूसरी ओर अवैध रूप से ब्रांच का संचालन कर शराब बेचने वाले शराब माफिया अपनी काली कमाई के कारोबार में पास हो रहे हैं। उल्लेखनीय है कि आपकारी एक्ट में होने वाली कार्रवाई को पुलिस की लोकल एक्ट की कार्रवाई में शामिल किया गया है जिससे कि यदि आबकारी विभाग कार्रवाई करने से परहेज करें तो पुलिस कार्रवाई कर सके, परन्तु क्षेत्र के हालात देखकर यह कहा जा सकता है कि यहां पूरे कुएं में भांग घुली हुई है, जिसके चलते किसी को करोड़ों की काली कमाई का यह कारोबार दिखाई नहीं दे रहा है।
आबकारी महकमा कर रहा औपचारिकता
शराब बिक्री और अवैध शराब की रोकथाम के लिए मूल रूप से जिम्मेदार आबकारी महकमा मानो खुद ही नशे में गाफील है जिन्हें लाइसेंस की आड़ में चल रहा यह खेल दिखाई नहीं दे रहा है और जब सरकार शुद्ध मंशा से इस अवैध कारोबार पर लगाम लगाने की बात कर रही है तो यह जिम्मेदार हाईवे के किनारे बने होटल और ढाबों पर कार्रवाई के नाम पर कभी पांच क्वार्टर तो कभी दो बोतल की कार्रवाई कर कागजी खाना पूर्ति कर रहे हैं, जिससे सरकार को बताया जा सके कि कार्रवाई हो रही है। लेकिन इस धंधे के बड़े मगरमच्छों को मानो यह विभाग शरण देता प्रतीत हो रहा है।
जब हर कोई बेच रहा शराब तो लाइसेंस क्यों?
ब्रांच के माध्यम से बिकने वाली अवैध शराब की बिक्री को लेकर एक ओर जहां पुलिस और आबकारी ने चुप्पी साथ रखी है वहीं दूसरी ओर अवैध रूप से शराब बिक्री का है खेल जिम्मेदारों की जिम्मेदारी पर सवाल खड़े कर रहा है। जहां लाइसेंस की आड़ में खुलेआम अवैध रूप से शराब ब्रांच के माध्यम से बेची जा रही है तो ऐसे में आम जनमानस के मन में यह सवाल भी घर करने लगा है कि जब अवैध तरीके से शराब खुलेआम बेची जा रही है तो इसे में फिर लाइसेंस की प्रणाली क्यों है? इसके बजाय तो शराब को खुलेआम बेचने की स्वीकृति जारी कर दो तो चौराहों पर आसानी से शराब उपलब्ध होगी जो सरकार के राजस्व को बढ़ाने का जरिया साबित होगी! आज भले ही शराब लाइसेंस के जरिए बेची जा रही है लेकिन जिम्मेदारों की अनदेखी जनमानस के मन में कई तरह के सवाल पैदा कर रही है जो फिलहाल जवाब की प्रतीक्षा कर रहे हैं।
मोटी बंदी से चलता है खेल
सूत्रों का कहना है कि शराब के काले कारोबार में मोटी बंदी का खेल चलता है, हजारों रुपए मासिक बंदी के रूप में जिम्मेदारों तक पहुंच जाते हैं और इसका खुलासा पूर्व में कई बार भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो कर चुका है और बड़ी कार्रवाइयों को अंजाम देते हुए विभाग के बड़े पदों पर बैठे हुए जिम्मेदारों को रंगे हाथों पकड़ कर किया है। ऐसे हालातो में आरोप यह भी है कि पुलिस भी मासिक बंदी के इस खेल से अछूती नहीं है और इसलिए पुलिस कार्रवाइयों में भी अवैध रूप से संचालित होने वाली शराब ब्रांच का कहीं कोई जिक्र नहीं आता है। आबकारी एक्ट के नाम पर हथकड़ी शराब की 5 से 10 बोतल पकड़ कर पुलिस भी एक्ट की खानापूर्ति कर लेती है।
इनका कहना
ब्रांच का संचालन करना गलत है, हमने विभाग के अधिकारियों को इन पर कार्रवाई करने के लिए निर्देशित किया है, जल्द ही कार्रवाई की जाएगी।
गजेंद्र सिंह राजपुरोहित,
जिला आबकारी अधिकारी