चित्तौड़गढ़ - टेंडर नया गाड़ी खटारा, सब में मलाई का बंटवारा !
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चित्तौड़गढ़ - सरस में 'घुला' भ्रष्टाचार का रस! चित्तौड़गढ़ डेयरी में वाहन घोटाले का मामला

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चित्तौड़गढ़ डेयरी में लंबे समय से चल रहे वाहन घोटाले का खुलासा, करवाई में वसूली से ही उतर सकता है डेयरी का लोन

सुभाष चंद्र बैरागी


सीधा सवाल। चित्तौड़गढ़।
दूध में मिलावट की बातें आम हैं, लेकिन यहां मामला थोड़ा अलग है ,चित्तौड़गढ़ डेयरी में टेंडर के नाम पर ऐसा खेल चल रहा है, जिसमें गाड़ियों से लेकर गारंटी तक सब कुछ ‘कागज़ी दूध’ जैसा शुद्ध दिखाया गया, लेकिन असलियत में घोटाले का गाढ़ा पानी घुला हुआ है। टेंडर में नई गाड़ियों की शर्तें तय की गईं, पर सप्लाई के लिए चलाई जा रही हैं पुरानी और जर्जर गाड़ियां। दिलचस्प बात यह है कि सब कुछ सिस्टम के ‘सहमति सूत्र’ से संचालित हो रहा है, जिसमें यह तय कर पाना मुश्किल है कि मलाई किसने ज्यादा खाई ठेकेदार, अधिकारी या राजनीतिक संरक्षक? हालत यह है कि कहने को तो डेयरी के अध्यक्ष भी बदल गए लेकिन ना तो सालों से चले आ रहा है ठेकेदार बदले हैं और ना ही चित्तौड़गढ़ प्रतापगढ़ दुग्ध उत्पादक संघ को खा रही भ्रष्टाचार की घुन में कोई बदलाव हुआ है। लंबे समय से भ्रष्टाचार और घोटाला चल रहा है। इससे लगने लगा है कि पूरा का पूरा चित्तौड़गढ़ डेयरी का प्लांट भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ चुका है।

यह है मामला

चित्तौड़गढ़ प्रतापगढ़ दुग्ध उत्पादक संघ द्वारा संचालित की जाने वाली चित्तौड़गढ़ डेयरी में प्लांट से दूध ले जाने वाली गाड़ियों के लिए टेंडर किए गए हैं। जिनमे टेंडर शर्तों का सीधा उल्लंघन किया जा रहा है। नियमों की बात करें तो चित्तौड़गढ़ डेयरी में पुराने वाहन लगाए जाने का टेंडर में प्रावधान नहीं है लेकिन लंबे समय से ठेकेदारों द्वारा पुराने वाहनों का प्रयोग किया जा रहा है। और उनके स्थान पर बिल नए वाहनों के बनाए जा रहे हैं। इस पूरे घोटाले में यह भी तय कर पाना मुश्किल हो रहा है कि इसमें सबसे ज्यादा कमाई ठेकेदार की है अधिकारियों की है इस डेयरी में किसानों के प्रतिनिधि बनकर बैठे अध्यक्ष की है। चुनाव प्रक्रिया के जरिए अध्यक्ष बदल गए हैं लेकिन इस सिस्टम से जुड़े ठेकेदार नहीं बदले गए हैं। बस प्रबंधन में हुए इस बदलाव के चलते कुछ ठेकेदारों के रूट बदल दिए गए लेकिन नई गाड़ियों के नंबर लिखवा कर पुरानी और खटारा गाड़ियां, दो गाड़ियों का दूध एक ही गाड़ी में ले जाकर चूना लगाने का खेल बदस्तूर जारी है।

मिली भगत से चल रहा खेल

दस्तावेजों के अनुसार चित्तौड़गढ़ डेयरी में प्रोपराइटर पूजा आचार्य की फर्म द्वारा सांवरिया जी बड़ी सादड़ी मार्ग के लिए टेंडर भरा गया जिसमें नए वाहन लगाने की बात कही गई लेकिन उसके स्थान पर पुराने वाहनों से सप्लाई की जा रही है। इसी प्रकार कवि शंकर आचार्य द्वारा नियमों के विपरीत वर्क आर्डर में पंजीकृत वाहनों के स्थान पर दूसरे वाहनों से दूध भेजा जा रहा है। इस पूरे घोटाले में कोई भी फर्म कारनामा करने से पीछे नहीं है। निविदा धारक फर्म मुरली स्टोर द्वारा वाहनों की संख्या कम करते हुए,एक ही गाड़ी में दो गाड़ी का दूध भेजा जा रहा है। ओम प्रकाश जाट द्वारा भी ऐसा ही किया जा रहा है। नए वाहनों के टेंडर लेकर तय अवधि से पुराने वाहन उपयोग किया जा रहे हैं। लगभग सभी तक ठेकेदार इस तरह की गड़बड़ियां कर रहे हैं। लंबे समय से यह घोटाला चल रहा है लेकिन ना तो डेयरी के अधिकारी और ना ही किसानों के हित रक्षक बनकर आने वाले अध्यक्ष द्वारा कोई कार्रवाई की गई है। इससे साफ हो जाता है कि पूरे कुएं में भांग घुली हुई है।

सांवरलाल की तैयारी सब पर भारी!

डेयरी में विभिन्न मार्गों पर दूध सप्लाई करने वाली फर्म सांवरलाल जाट का कारनामा इन सब पर भारी है। इस फर्म द्वारा भ्रष्टाचार की सारी हदें पार कर दी गई है। चित्तौड़गढ़ में अनुबंध पर लगाए गए दूध सप्लाई के वाहन द्वारा भीलवाड़ा में सरस की सप्लाई की जा रही है। अब भला यह कैसे संभव है की चित्तौड़गढ़ में सप्लाई देने वाला वाहन भीलवाड़ा में भी इस पंजीकरण के आधार पर सप्लाई दे रहा है। यह सब शायद इसलिए संभव हो रहा है कि चित्तौड़गढ़ डेयरी में इसे जानबूझकर अनदेखा किया जा रहा है या सभी में कमीशन की रेवड़ियां बांटी जा रही है।

गर्ग के सालों के अनुभव पर उठे सवाल

इस मामले में वितरण व्यवस्था देखने वाले सेवानिवृत्ति के बाद भी संविदा के आधार पर सेवा देने वाले मार्केटिंग प्रभारी अरविंद गर्ग जो इस पूरी व्यवस्था की मॉनिटरिंग करते हैं। साथ ही भुगतान में भी जिनकी महत्वपूर्ण भूमिका रहती है। खुद के दुग्ध इंडस्ट्री में सालों का अनुभव होने का दावा करते हैं। उनकी भूमिका पर भी सवाल खड़े हो रहे हैं। जब उनसे इस संदर्भ में जानकारी चाही गई तो ठेकेदारों का बचाव करने के लिए उन्होंने कहा कि वहां खराब होने पर उनको मौखिक या लिखित सूचना दी जाती है। और ऐसी स्थिति में वाहन बदल जाते है। जबकि दस्तावेज बताते हैं कि टेंडर में कई वाहन ऐसे हैं जो लंबे समय से सिर्फ कागजों में दौड़ रहे हैं। धरातल पर उन्हें देखा ही नहीं किया। जिन वाहनों को कागजों में दर्शाया गया है ,वह सिर्फ कागजी हैं जिनका हकीकत से कोई लेना-देना नहीं है और ना ही डेयरी में आते हैं। ऐसे में सवाल यह है कि अपनी इस इंडस्ट्री में सेवा पूरी कर सेवानिवृत्ति के बाद संविदा पर सेवा देने वाले सालों के अनुभवी गर्ग का अनुभव कही इस तरह का गड़बड़ियों का तो नहीं रहा है इसकी भी जांच होनी चाहिए।

एमडी ने निकाले आदेश हुए हवा

इस संबंध में डेयरी प्रबंधक प्रमोद चारण द्वारा लिखित आदेश निकल गया है ,जिसमें अनुबंधित वाहन के अतिरिक्त दूसरे वाहन का प्रयोग करने पर प्रथम बार 21 हजार रुपए का दंड और पुनरावृत्ति होने पर टेंडर निरस्त किए जाएंगे। लेकिन सालों से डेयरी के साथ धोखाधड़ी कर रहा है ठेकेदारों की यदि जांच की जाए तो केवल उनके आर्थिक दंड से ही डेयरी पर चल रहे लोन की राशि के बड़े हिस्से का भुगतान किया जा सकता है। लेकिन जब गर्ग जैसे अनुभवी और भ्रष्टाचार को शिष्टाचार बनाने वाले ऐसे ठेकेदार मौजूद हैं जिन्हें राजनीतिक संरक्षण प्राप्त है तो कार्रवाई की सोचना भी बेईमानी होगा।

पहले बतायी साजिश अब क्या?

यहां यह भी बता दे की डेयरी से दूध लेकर जाने वाले वाहन चालक ही दूध के बदले में बूथ संचालकों द्वारा किए जाने वाले भुगतान को लाकर डेयरी में जमा करते हैं। हाल ही में भुगतान में दस्तावेजों में गड़बड़ी कर अधिक राशि वसूल करने का मामला सामने आया है , अब यह स्पष्ट हो गया है कि जो वाहनदूध लेकर जा रहे हैं ,वह डेयरी में अनुबंधित ही नहीं है। ऐसे में यदि चालक वाहन और नगदी लेकर गायब हो जाते हैं तो ना तो प्रबंधन ठेकेदार का कुछ बिगाड़ सकता है और ना ही चालक का क्योंकि दोनों ही उनके रिकॉर्ड में नहीं है ,और जो रिकॉर्ड में है वह धरातल पर नहीं है। पूर्व में इस मामले में हुए खुलासे को लेकर संबंधित ठेकेदार द्वारा इसे साजिश बताया गया था। अब ऐसा मामला सामने आया है जहां लगभग सभी ठेकेदार इस पूरे मामले में किसानों के संघ के साथ षड्यंत्र करने वाले षड्यंत्रकारी प्रतीत हो रहे हैं।

पहले भरते हैं कम रेट फिर पुराने से होती है वसूली

दरअसल निविदा नियमों की बात करें तो सप्लाई के लिए नए वाहनों की आवश्यकता होती है, जो टेंडर शर्ट में स्पष्ट रूप से उल्लेखित है। नए वाहन खरीदने पर भी अगले साल टेंडर मिले या ना मिले इसकी गारंटी नहीं होती है। ऐसे में जो सप्लायर शर्तों के आधार पर टेंडर भरते हैं ,उनके दर अधिक होती है। जबकि लंबे समय से भ्रष्टाचार कर सेटिंग से जमे ठेकेदार कम दर भरकर भ्रष्टाचार के जरिए मोटी कमाई करते हैं और सालों से जमे होने का कारण पूरा सिस्टम उनके हाथों में है। इसलिए अध्यक्ष या अधिकारी कोई भी हो इन पर कोई फर्क नहीं पड़ता है और भ्रष्टाचार शिष्टाचार बन जाता है।

लंबे समय से चल रहा आरोप का दौर

चित्तौड़गढ़ डेयरी के अध्यक्ष बद्री लाल जाट लगातार सत्ता परिवर्तन के बाद से ही उनके चुनाव में प्रतिद्वंदी रहे सहकारिता मंत्री गौतम दक पर उन्हें हटाने के प्रयास करने का आरोप लगाते रहे हैं। जबकि सहकारिता मंत्री दक द्वारा डेयरी में अंदर खाने भ्रष्टाचार की जांच करवाने की बात कही जाती रही है। अब ऐसी स्थिति में यदि लंबे समय से चल रहे टेंडर घोटाले की प्रदेश स्तर से जांच होती है तो लंबे समय से चल रही इस गड़बड़ी में शामिल लोगों की भूमिका और दुग्ध उत्पादक संघ को हुए नुकसान की जानकारी साफ हो जाएगी। इसलिए आवश्यक है कि विभिन्न मामलों में जांच करवा रहे सहकारिता मंत्री दक यदि इस गंभीर प्रकरण में उच्च स्तरीय जांच करवाते हैं तो बड़े घोटाले से पर्दाफाश होगा साथ ही सहकारिता के क्षेत्र के इस उपक्रम के जरिए चांदी कूटने वालों विरुद्ध ठोस कार्रवाई की जा सकेगी।


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