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सीधा सवाल। निंबाहेड़ा। पारदर्शिता पूर्ण कार्य करने और और जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए सूचना के अधिकार अधिनियम की क्रियान्वित की गई, लेकिन कहा जाता है ना की हमारे देश में नियम बनाने से पहले उनसे बचने की गलियां निकाली जाती है। ऐसा ही कुछ निंबाहेड़ा तहसील कार्यालय में सूचना के अधिकार अधिनियम में सामने आया है जहां लोक सूचना अधिकारी तहसीलदार ने गलत सूचना आवेदक को भिजवा दी। सूचना मिलने के बाद साफ हो गया है कि तहसील कार्यालय में सूचना के अधिकार अधिनियम को ना तो गंभीरता से लिया जा रहा है और ना ही सूचनाओं देने को लेकर किसी प्रकार की जवाबदेही बरती जा रही है। आवेदक द्वारा तहसील कार्यालय में किए गए नामांतरण की सूचना मांगी गई जिस पर अपने कार्यालय की लंबित प्रकरणों की संख्या शून्य बताते हुए सूचना भिजवा दी गई। अब देखने वाली बात है कि मामला सामने आने के बाद किस प्रकार की कार्रवाई अमल में लाई जाती है।
यह है मामला
जानकारी के अनुसार निंबाहेड़ा तहसील कार्यालय में कार्यपालक मजिस्ट्रेट तहसीलदार गोपाल लाल जीनगर से एक प्रार्थी द्वारा क्षेत्र में हुए नामांतरण को लेकर एक सूचना मांगी गई जिसमें तहसील कार्यालय से आवेदन के आधार पर सूचना भेजी गई जिसमें बताया गया कि तहसील कार्यालय में कोई भी नामांतरण का प्रकरण लंबित नहीं है, जबकि वास्तविकता यह है कि साल 2022 में वजे राम भील और गंगाबाई भील द्वारा अपनी भूमि का भू उपयोग परिवर्तन किया गया जिसके कन्वर्जन ऑर्डर LC/2021-22/119321 दिनांक 22 जूलाई 2022 और LC/2021-22/120355 दिनांक 22 जूलाई 2022 हैं लेकिन आज तक उनके खाते की भूमि कृषि योग्य भूमि ही बता रही है जबकि नियमानुसार इसका नामांतरण दर्ज करते हुए नए खाता नंबर पर भूमि को नए प्रकार में इंद्राज किया जाना चाहिए, लेकिन ऐसा नहीं हुआ और ना ही इसकी सूचना आवेदन में दी गई।
इसलिए नामांतरण और भूमि संबंधी कार्यों में लगती है देर
सूत्रों का कहना है कि भूमि संबंधी कार्यों के लिए जवाब देही तहसीलदार की होती है क्योंकि भूमि का मालिक राजस्व नियमों के अनुसार तहसीलदार को बताया जाता है लेकिन राजस्व मामलों में इंस्पेक्टर राज इस कदर हावी है कि यहां भूमि संबंधी कार्यों को लेकर लोगों को काफी मशक्कत करनी पड़ती है। सूत्रों का कहना है कि भूमि संबंधी विभिन्न कार्यों के लिए जमकर लेनदेन होता है और लेनदेन नहीं होने की स्थिति में नामांतरण, भू हस्तांतरण, बटवारा जैसे कार्यों से लेकर सीमा जानकारी तक के कार्य लंबित पड़े रहते हैं और लेनदेन होने के बाद भी इन प्रार्थना पत्र या आवेदनों पर कार्रवाई अमल में लाई जाती है। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि ऐसे छोटे-मोटे मामलों को लेकर रिश्वत लेने के मामले में कई बार भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो रिश्वत लेते गिरफ्तारिया कर चुका है। वही प्रदेश की बात की जाए तो ऐसे मामलों में रिश्वत लेने का आंकड़ा दहाई को पार कर सैंकड़े पर पहुंच चुका है और संभव है कि सामने जो आए हैं वह तो महज उदाहरण है और भी ऐसे कई मामले हो सकते हैं जिनके भूमि संबंधी मामले विभिन्न स्तरों पर लंबित पड़े हैं।
सूचना में किया खेल, पटवारी जिम्मेदार!
प्रार्थी के आवेदन पर भिजवाई गई सूचना में भी तहसील कार्यालय में जमकर खेल हुआ है। सूचना में स्पष्ट उल्लेखित किया गया है कि पटवारी से सूचना संकलित की गई है और उसके आधार पर सूचना तैयार की गई है वहीं तहसील कार्यालय में खुद को बचाए रखने के लिए यह भी सूचना में उल्लेखित किया कि आवेदन पटवारी की आईडी पर आते हैं ऐसे में साफ है कि सूचना देने वालों को इस बात की जानकारी थी कि सूचना मिथ्या है इसलिए उसमें से बचने का रास्ता पहले निकल गया जिससे कि यदि आवेदन कर्ता गलत सूचना प्राप्त होने को लेकर अपील करें अथवा शिकायत करें तो तहसीलदार के पास एक ठोस कारण छोड़ा गया कि पटवारी की आईडी होने के कारण सूचनाओं का संकलन पूरा नहीं किया गया। ऐसे में साफ है कि सूचना के अधिकार को सरकार ने जहां प्रशासन की जवाब देही सुनिश्चित करने और पारदर्शी बनाने के लिए लागू किया था वही अधिकारी अभी अपने पुराने ढर्रे से पीछा नहीं छुड़ा पा रहे हैं।