चित्तौड़गढ़ - राष्ट्रीय जीएम नीति बनाने में किसान की राय को शामिल करने की मांग, सांसद जोशी को दिया ज्ञापन
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सीधा सवाल। चितौड़गढ़। भारतीय किसान संघ के द्वारा राष्ट्रीय जीएम नीति को लेकर देशव्यापी जनजागरण आंदोलन के तहत देशभर के सभी लोकसभा व राज्यसभा के संसद सदस्यों, लोकसभा अध्यक्ष, राज्यसभा के सभापति के नाम छै सौ से अधिक जिलों में ज्ञापन सौंपे जा रहे हैं। उक्त आशय की जानकारी देते हुए भारतीय किसान संघ के  उदयपुर संभाग अध्यक्ष रतन सिंह ने बताया कि अभी हाल ही में जुलाई माह में जीएम फसलों के मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने सरकार को निर्देश देते हुए आदेश दिया था कि केंद्र सरकार सभी हितधारकों से बात करते हुए राष्ट्रीय जीएम नीति बनाए और इस कार्य को चार माह में पूर्ण करने की सीमा भी निर्धारित की थी।  श्री मिश्र ने कहा कि किसान मुख्य हितधारक है इसलिए उसकी राय को राष्ट्रीय जीएम नीति निर्माण में प्रमुख रूप से शामिल किया जाए। लेकिन अभी तक केंद्र सरकार या फिर इसके लिए बनी समिति ने किसान या किसान संगठनों से अभिमत लेने कोई संपर्क नहीं किया है, ऐसे में समिति की कार्यप्रणाली संदेह के घेरे में हैं।

विदित हो कि भारतीय किसान संघ देश का सबसे बड़ा किसान संगठन है। जो कि हमेशा से पारंपरिक बीजों, लागत आधारित लाभकारी मूल्य, जहरमुक्त व कम लागत की खेती, किसान व आम जनों के स्वास्थ्य सम्मत पोषणयुक्त अन्न उत्पादन का पैरोकार रहा है। समय समय पर इन विषयों को लेकर सरकार के निर्णयों की खिलाफत भी की है। जीएम फसलों की अनुमति देने के मामले में किसान संघ फिर सरकार के आमने सामने है।

किसान संघ का कहना है कि भारत में जीएम फसलों की आवश्यकता नहीं है। रासायनिक खेती व जहरीला जीएम कृषि, किसान व पर्यावरण के लिए असुरक्षित है। जीएम फसलें जैव विविधता को नष्ट और ग्लोवल वार्मिंग को बढ़ाती हैं। बीटी कपास इसका उदाहरण हैं जिसके फेल होने से किसानों को हुए भारी नुकसान के कारण उन्हें आत्महत्या तक करनी पड़ी थी। भारत को कम यंत्रीकरण, रोजगार सृजन क्षमता वाली कृषि चाहिए, न कि जीएम खेती। अनेक देशों में इस पर प्रतिबंध हैं। इससे साफ है कि किसान संघ जीएम फसलों का पक्षधर नहीं है।

क्या है सर्वोच्च न्यायालय का आदेश

लगभग बीस साल से चल रही सुनवाई के बाद सर्वोच्च न्यायालय ने 23 जुलाई 2024 को दिए अपने आदेश में कहा कि केंद्र सरकार सभी हितधारक जैसे किसान, कृषि, कृषि वैज्ञानिकों, राज्य सरकारों, किसान संगठन, उपभोक्ता संगठन आदि सभी की सलाह लेते हुए जीएम फसलों पर राष्ट्रीय जीएम नीति बनाए। जिसमें जीएम फसलों का मुख्य रूप से पर्यावरण व स्वास्थ्य पर प्रभाव का मूल्यांकन, व्यवसायिक उपयोग के लिए नियम व मानक, आयात निर्यात, लेबलिंग, पैकेजिंग के नियम, सार्वजनिक शिक्षा, जागरूकता आदि विषयों पर हितधारकों से चर्चा कर राय को शामिल करने के निर्देश दिए हैं।

जीएम समिति ने नहीं ली अभी तक किसी से सलाह

सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के तीन माह बीत जाने के बावजूद भी सरकार द्वारा बनाई समिति ने किसी भी हितधारक से कोई सलाह नहीं ली है। जिससे हितधारक चिंतित हैं कि कहीं न कहीं पीछे के रास्ते से चोरी छिपे जीएम फसलों को अनुमति देने की तैयारी की जा रही है। हितधारकों का आरोप है कि सरकार बिना किसी सलाह व प्रभावों का अध्ययन किए बिना खाद्य व पोषण सुरक्षा के नाम पर भारत मे जीएम फसलों की अनुमति देना चाहती हैं। जबकि सर्वोच्च न्यायालय अपने देश, अपनी जलवायु, अपने लोगों के स्वास्थ्य पर प्रभाव का विस्तृत अध्ययन व हानि लाभ के परिणाम के निष्कर्ष उपरांत आगे बढ़ने का पक्षधर है।

देशभर में लोकसभा व राज्यसभा सांसदों को सौंपे जा रहे हैं ज्ञापन

भारतीय किसान संघ के रतन सिंह जी गठेली ने बताया कि जीएम तकनीक के नफा नुकसान को लेकर देश में विस्तृत चर्चा हो, राष्ट्रीय जीएम नीति बनाने में हितधारकों की राय को शामिल किया जाए। इसी विषय को लेकर भारतीय किसान संघ की 600 से अधिक जिला इकाइयों द्वारा देशभर में दोनों सदनों के सभी सांसदों, लोकसभा अध्यक्ष, राज्यसभा सभापति के नाम ज्ञापन सौंपे जा रहे हैं और उनसे आग्रह किया है कि वे आगामी शीतकालीन लोकसभा व राज्यसभा के सत्रों में प्रश्न के माध्यम से चर्चा करें। जिससे राष्ट्रीय जीएम नीति निर्माण में देश की समग्र सोच को शामिल किया जा सके।
इस अवसर पर भारतीय किसान संघ के संभाग सह मंत्री मिठू लाल रेबारी, प्रान्त कोषाध्यक्ष प्रकाश मेहता, जिलाध्यक्ष नारायण सिंह, जिला मंत्री लाभ चन्द धाकड़, जिला उपाध्यक्ष भूरा लाल धाकड़, जिला महिला प्रमुख भारती वैष्णव, गंगरार तहसील अध्यक्ष सुरेश शर्मा, प्रचार प्रमुख शिवराज सालवी , छगन लाल धाकड़ आदि उपस्थिति रहे।


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