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सीधा सवाल। चित्तौड़गढ़। राजस्थान में चित्तौड़गढ़ जिले के विभिन्न थानों में दर्ज गंभीर अपराधों में नामजद अस्सी से ज्यादा आरोपी न्यायालय में सरकार की ओर से लचीली पैरवी के चलते गिरफ्तारी से दूर है। इतना ही नहीं स्वास्थ्य कारण बताकर भी कई आरोपी कानूनन गिरफ्त से दूर है।
जिला पुलिस के आधिकारिक सूत्रों के अनुसार वर्तमान में जिले के विभिन्न थानों में धोखाधड़ी, छेड़छाड़ जैसे सामान्य मामलों के अलावा यौन शोषण, मादक पदार्थ तस्करी के साथ हत्या, हत्या के प्रयास के दर्ज मामलों में आरोपी बनाए गए 84 अपराधियों की गिरफ्तारी पर न्यायालय की अस्थाई रोक लगी हुई है।
इस संबंध में जिला पुलिस अधीक्षक मनीष त्रिपाठी ने बताया कि न्यायालय आदेश के चलते हम इस पर ज्यादा कुछ नहीं कह सकते हैं लेकिन हम अपना काम करते हैं और जैसा न्यायालय आदेश हो पालना भी करते हैं।
वहीं मादक पदार्थ तस्करी, हत्या, यौन शोषण जैसे गंभीर मामलों के जांच अधिकारी अनौपचारिक बताते हैं कि गंभीर मामलों में गिरफ्तारी पर रोक का आरोपियों को लोक अभियोजक की ओर से लचीली पैरवी अथवा स्थगन सुनवाई के दौरान उनकी अनुपस्थिति का लाभ मिल जाता है। जिम्मेदार जांच अधिकारियों का कहना है कि इस तरह गंभीर मामलों में लिप्त अपराधी को जांच प्रभावित करने से लेकर गवाहों व तथ्यों से छेड़छाड़ का अवसर मिल जाता है जिसके कारण हम चाहकर भी आरोपियों को सजा नहीं दिलवा पाते हैं और इससे प्रभावित हम पर ही कई आरोप लगा देते हैं। इसके विपरित यहां के बीते एक वर्ष में कुछ गंभीर मामलों में जांच अधिकारी ही ना तो केस डायरी या अन्य तथ्य मांगने पर भी कोई ना कोई बहाना बनाकर न्यायालय में प्रस्तुत नहीं करते जिससे भी आरोपियों को यह लाभ न्यायालय से मिल जाता है।
इसके अलावा कुछ आरोपी कथित ह्दय रोगी बनकर अपने विरूद्ध आरोप पत्र पेश होने से पूर्व ही अंतरिम जमानत पा जाते है। सबसे बड़ी बात तो यह है कि यह आरोपी कानूनी दांव पेंच लगाकर पुलिस की गिरफ्त से दूर होकर ना केवल जांच को लम्बित करवाते हैं बल्कि अपने विरूद्ध दर्ज मामलों के गवाहों को प्रभावित करने के साथ सबूत तक नष्ट करवा देते हैं और बाद में जांच एजेंसियों से न्यायालय आरोप पत्र अथवा केस डायरी तलब करती है तो उनमें आरोपी के विरूद्ध या तो कोई सबूत, गवाह नहीं होते हैं या सम्पूर्ण पत्रावली न्यायालय की नजर में संदेहास्पद हो जाती है जिसका सीधा लाभ आरोपियों को आरोप से बरी होने का मिल जाता है। चित्तौड़गढ़ जिले में ऐसे ही कुछ चर्चित मामलों में आरोपियों को लाभ मिला है जिनमें प्रमुख रूप से सभापति और सरकारी विद्यालय में यौनाचार के अलावा एक प्रमुख होटल में नाबालिग के बलात्कार मामले है। वहीं कनेरा थाना पुलिस द्वारा सौ किलो से अधिक अफीम जप्ती के आरोपी का मामला है तो कनेरा के ही एक जघन्य हत्या का मामला भी है। चित्तौड़गढ़ सदर व पारसोली में दर्ज अफीम पट्टे के बदले वसूली का मामला है। सबसे आश्चर्यजनक तो यह है कि समय पर पुलिस द्वारा अपनी रिपोर्ट नहीं प्रस्तुत करने अथवा आधी अधूरी प्रस्तुत करने से इस तरह न्यायालय से पुलिस के ही घोषित आदतन अपराधियों को भी यह लाभ मिल रहा है। यह स्थिति मात्र एक जिले की है तो सोचो कि प्रदेश भर के जिलों के क्या हालात हो सकते है।