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सीधा सवाल। चित्तौड़गढ़। महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय की स्थानीय इकाई कृषि विज्ञान केन्द्र, चित्तौड़गढ़ द्वारा समूह प्रथम पंक्ति प्रदर्शन राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन के तहत गांव शम्भूनाथ जी का खेड़ा (पं.सं भैंसरोड़गढ़) में को प्रक्षेत्र दिवस (मूंगफली) का आयोजन किया गया। प्रक्षेत्र दिवस प्रगतिशील कृषक दिनेश / केलाराम धाकड़ के खेत पर आयोजित किया गया। जिसमें 65 कृषक एवं कृषक महिलाओं ने भाग लिया। केन्द्र के वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं अध्यक्ष डॉ. रतन लाल सोलंकी ने कहा कि मूंगफली की उन्नत किस्म जी.जे.जी.-37 का गांव शम्भूनाथ जी का खेड़ा (पं.सं भैंसरोड़गढ़) में प्रथम पंक्ति प्रदर्शन लगायें गये। इस प्रदर्शन में बीज उपचार ट्राइकोड्रमा (जैविक फफूंदनाशक) व राइजोबियम व पी.एस.बी. कल्चर से किया गया तथा जिप्सम उर्वरक उपलब्ध कराये गये। इस किस्म की विशेषताये यह है कि स्थानीय किस्म की तुलना में अधिक पैदावार, बड़ा दाना तेल की मात्रा 48 प्रतिशत है। यह किस्म 110-120 दिन में पकती है एवं अधिक बरसात में भी सहनशील है। टीक्का रोग प्रतिरोधी किस्म है साथ ही डॉ. सोलंकी ने भूमि सुधार हेतु जिप्सम प्रयोग व हरी खाद का महत्व, मृदा स्वास्थ्य हेतु जैविक खादों का प्रयोग, वर्मी कम्पोस्ट बनाने की विभिन्न विधियां व जैविक खाद वर्मीवाश तैयार करने की जानकारी दी।
संजय कुमार धाकड, कार्यकम सहायक ने किसानो को कहा कि मूंगफली में रोमिन इल्ली पत्तियों को खाकर पौधों को अंगविहीन कर देता है। पूर्ण विकसित इल्लियों पर घने भूरे बाल होते हैं। इसकी रोकथाम के लिए आवश्यक है कि खेत में इस कीड़े के दिखते ही जगह-जगह पर बन रहे इसके अण्डों या छोटे-छोटे इल्लियों से लद रहे पौधों या पत्तियों को काटकर या तो जमीन में दबा दिया जाय या फिर उन्हें घास-फूस के साथ जला दिया जाय। इसकी रोकथाम के लिए क्विनलफास 1 लीटर कीटनाशी दवा को 700-800 लीटर पानी में घोल बना प्रति हैक्टर छिड़काव करना चाहिए तथा उत्पादित मूंगफली की किस्म का बीज अच्छा होने से अगले वर्ष बीज के रूप में उपयोग करें। शंकर लाल नाई, सेवानिवृत सहायक कृषि अधिकारी ने किसानो को रबी फसलो के उत्पादन एवं बीजोपचार के बारे में तकनीकी जानकारी दी।
अन्त में केन्द्र के संजय कुमार धाकड, कार्यक्रम सहायक ने प्रक्षेत्र दिवस में उपस्थित सभी कृषक एवं कृषक महिलाओं को धन्यवाद ज्ञापित किया।