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सीधा सवाल। चित्तौड़गढ़। राम कथा के दौरान सुग्रीव-बाली युद्ध प्रसंग का वर्णन करते हुए संत दिग्विजय राम ने कहा कि जब तक सुग्रीव के पास कुछ नहीं था, वह बाली के भय से जंगल-जंगल भटकता रहा, लेकिन जब प्रभु कृपा से सब कुछ मिल गया तो उसने भगवान को ही भूल गया। यही स्थिति हर जीव की होती है – जब तक प्राप्त नहीं होता तब तक ईश्वर को याद करता है और जब प्राप्त हो जाता है तो उसे भूल जाता है।
संत ने कहा कि बाली की मृत्यु के बाद प्रभु श्रीराम ने तारा को नश्वरता का ज्ञान दिया। जीवन का सत्य यही है कि जो आया है वह जाएगा। यह शरीर पंचतत्वों (पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश) से बना है और अंततः इन्हीं में विलीन हो जाएगा। आत्मा वस्त्र बदलती है, जैसे नए कपड़ों की चमक समय के साथ फीकी हो जाती है, वैसे ही शरीर की चमक यानी यौवन भी धीरे-धीरे समाप्त हो जाता है।
उन्होंने कहा कि सत्ता, संपत्ति, वैभव और यौवन का अभिमान व्यर्थ है क्योंकि एक दिन इनका अंत निश्चित है। प्रभु की कृपा के बिना सृष्टि पर एक पत्ता भी नहीं हिल सकता। जहां रामकथा होती है वहां हनुमान जी अवश्य उपस्थित रहते हैं, भले ही उन्हें चर्मचक्षु से न देखा जा सके।
संत ने बताया कि हनुमान जी में इतना पराक्रम था कि वे चाहकर भी रावण का वध कर सकते थे, लेकिन प्रभु की आज्ञा के बिना उन्होंने केवल लंका दहन कर लौटना उचित समझा। रामचरितमानस का उल्लेख करते हुए कहा कि जो शिवद्रोही है वह रामभक्त कभी नहीं हो सकता और जो शिवभक्त है वही सच्चा रामभक्त है।
कथा में बाली वध, लंका दहन, रावण वध और प्रभु श्रीराम का 14 वर्ष का वनवास पूरा कर अयोध्या लौटने का प्रसंग सुनाया गया।
श्रद्धेय संत रमता राम जी के सान्निध्य में चल रही राम कथा में 22 अगस्त से भक्तमाल ग्रंथ का श्रवण कराया जाएगा, जिसका समय प्रातः 10 से 11 बजे तक रहेगा।
