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आयुर्वेद व धार्मिक परंपराओं से राष्ट्र सेवा के संकल्प का आव्हान
‘सात्त्विक आहार’ और ‘संयमित जीवन’ ही सर्वोपरि-वैद्य हंसराज
सीधा सवाल। शाहपुरा। श्रीनवग्रह आश्रम सेवा संस्थान मोतीबोर का खेड़ा के संस्थापक अध्यक्ष एवं प्रख्यात आयुर्वेदाचार्य वैद्य हंसराज चैधरी ने जबलपुर (मध्यप्रदेश) में आचार्यश्री समयसागरजी महाराज के चार्तुमास प्रवास के दौरान पहुंचकर उनके पावन चरणों में वंदन किया। उन्होंने चरण पखारकर आशीर्वाद प्राप्त किया। इस अवसर पर आचार्यश्री समयसागरजी महाराज ने हंसराज चैधरी को आयुर्वेद और वनस्पति विज्ञान के माध्यम से राष्ट्र सेवा में अग्रसर रहने का आशीर्वाद देते हुए उन्हें ‘राजवैद्य’ की उपाधि प्रदान की।
चार्तुमास की सभा में जैन समाज एवं चार्तुमास समिति के पदाधिकारियों चक्रेश मोदी, कैलाशचंद्र, संजय जैन व पीसी जैन ने वैद्य हंसराज चैधरी को साहित्य, स्मृति चिन्ह एवं दुपट्टा भेंटकर सम्मानित किया।
आचार्यश्री समयसागरजी महाराज के सानिध्य में आयोजित आहार-चर्या पर राष्ट्रीय संगोष्ठी में वैद्य हंसराज चैधरी मुख्य वक्ता रहे। उन्होंने कहा कि “आहार, विहार, व्यवहार और आचार यदि शुद्ध हों, तो ही व्यक्ति स्वस्थ रह सकता है। जब व्यक्ति स्वस्थ रहेगा, तभी उसका मन पवित्र और सकारात्मक होगा और ऐसे में वह राष्ट्र निर्माण में सार्थक भूमिका निभा सकेगा।” वैद्य चैधरी ने कहा कि जब तक मनुष्य अपने आहार और आचार को शुद्ध नहीं करता, तब तक वह आत्मिक शांति और स्वास्थ्य प्राप्त नहीं कर सकता। यही कारण है कि भारत की ऋषि-परंपरा ने हमेशा ‘सात्त्विक आहार’ और ‘संयमित जीवन’ को सर्वोपरि माना है।
उन्होंने आचार्यश्री विद्यासागरजी महाराज के आशीर्वाद को स्मरण करते हुए कहा कि आज जो भी सेवा कार्य वे आयुर्वेद और वनस्पति चिकित्सा के माध्यम से कर पा रहे हैं, उसका श्रेय उनके पावन मार्गदर्शन को है।
वैद्य चैधरी ने अपने संबोधन में जैन समाज की सराहना करते हुए कहा कि समाज की भूमिका हर क्षेत्र में अनुपम और प्रेरणादायी रही है। उन्होंने वर्तमान समय में पाश्चात्य संस्कृति के अंधानुकरण से दूर रहने की आवश्यकता पर जोर दिया। उनका कहना था कि यदि हम अपनी पारंपरिक जीवनशैली और आहार पद्धति को अपनाएं, तो अनेक गंभीर बीमारियों से बचाव संभव है।
उन्होंने समझाया कि भारत में प्राचीन काल से रीजनल, सीजनल और आरीजनल आहार की परंपरा रही है। ऋतु और प्रदेश अनुसार आहार लेने से शरीर सशक्त और रोगमुक्त रहता है, किंतु आधुनिक समय में इन परंपराओं की अनदेखी के परिणामस्वरूप कैंसर, हृदय रोग, डायबिटीज जैसी बीमारियां तेजी से बढ़ रही हैं।
आहार के महत्व को बताते हुए चैधरी ने संस्कृत वाक्यांश रसों निर्मिते मनः की व्याख्या की। उन्होंने कहा कि हमारे आहार से ही मन का निर्माण होता है। यदि भोजन सात्विक और शुद्ध है, तो मन भी सात्विक होगा, और यदि भोजन तामसिक या रासायनिक प्रभाव वाला है, तो मन पर उसका विपरीत असर होगा।
उन्होंने लोगों से अपील की कि समुद्री नमक, रिफाइंड तेल, रासायनिक खाद से उगाए गए फल-अनाज का सेवन बंद किया जाए। इसके स्थान पर प्राकृतिक और देशज आहार अपनाकर आत्मिक शांति एवं दीर्घायु प्राप्त की जा सकती है।
चैधरी ने कैंसर, किडनी और लिवर रोग जैसे गंभीर विषयों पर भी चर्चा की। उन्होंने कहा कि इन बीमारियों के प्रमुख कारण अनुचित आहार, रासायनिक खाद, तनावपूर्ण जीवनशैली और असंतुलित दिनचर्या हैं। आयुर्वेद के सिद्धांत बताते हैं कि यदि हम पंचतत्वों के अनुरूप जीवन जिएं दृ जल, अग्नि, वायु, पृथ्वी और आकाश का संतुलन बनाए रखें तो रोग पास नहीं आते। उन्होंने जोर देकर कहा कि आयुर्वेद केवल इलाज की पद्धति नहीं है, बल्कि यह स्वस्थ जीवन जीने की संपूर्ण जीवनशैली है।
सरकार द्वारा लागू की गई इंटीग्रेटेड चिकित्सा पद्धति की सराहना करते हुए उन्होंने कहा कि वे किसी भी चिकित्सा पद्धति के विरोधी नहीं हैं। आधुनिक चिकित्सा हो या आयुर्वेद, यूनानी हो या होम्योपैथी दृ सभी का लक्ष्य एक ही हैरू पीड़ित मानवता की सेवा। इसी भावना के साथ वे लगातार समाजहित में कार्य कर रहे हैं।
उल्लेखनीय है कि आचार्यश्री समयसागरजी महाराज के चार्तुमास प्रवास में यह संदेश स्पष्ट हुआ कि धर्म केवल पूजा-पाठ तक सीमित नहीं है, बल्कि जीवन के हर क्षेत्र में उसका प्रभाव है। आयुर्वेद और धर्म का गहरा संबंध है जैसे संयम, उपवास, समय पर भोजन, और सात्विक जीवनशैली धार्मिक अनुशासन का हिस्सा हैं, वहीं ये सभी बातें आयुर्वेदिक चिकित्सा की आधारशिला भी हैं।