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रोगियों ने किया स्वीकार डायलिसिस से मिला छुटकारा
रोहित रेगर। सीधा सवाल। छोटीसादड़ी। यह माना जाता है कि आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति भारत की सर्वप्रथम और सबसे प्रमुख रोग उपचार पद्धति है। लेकिन जैसे-जैसे एलोपैथी का चलन बढ़ा वैसे-वैसे लोग इस आयुर्वेद उपचार पद्धति से दूर होते गए लेकिन अब एक बार फिर आयुर्वेदिक उपचार अपना महत्व साबित कर रहा है। गंभीर और असाध्य माने जाने वाले रोगों का भी आयुर्वेद में उपचार है यह साबित हो रहा है छोटीसादड़ी उपखंड मुख्यालय के आयुर्वेद चिकित्सालय में जहां बड़ी संख्या में रोगियों को इस उपचार का फायदा मिला है। इस चिकित्सालय में किडनी के रोगियों के लिए एक उम्मीद की किरण जगी है। यहां उपचार करवाने वाले रोगियों ने कहा है कि उन्हें डायलिसिस जैसी स्थिति से भी मुक्ति मिली है और किडनी फेल्योर के मरीज अब सामान्य जीवन जी रहे हैं। लेकिन लोगों को फायदा पहुंचाने वाला है चिकित्सालय अभी भी अपने भवन के लिए तरस रहा है। अलग-अलग भवनों में संचालित होने वाला यह चिकित्सालय रोगियों के लिए किसी प्रधान से कम नहीं है।
कोरोना के बाद बढ़ा भरोसा
यूं तो आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति पुरातन काल की सबसे प्राचीन रोग पहचान और निदान की पद्धति है। लेकिन कोरोना काल के बाद इस पद्धति के प्रति लोगों का विश्वास मजबूत हुआ है। पोस्ट कॉविड समस्याओं से जूझ रहे कोरोना के बाद स्वस्थ हुए लोगों को विभिन्न समस्याओं से निदान दिलाने में आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। इसका सीधा उदाहरण छोटीसादड़ी राजकीय आयुर्वेद चिकित्सालय है। जहां लगातार उपचार का लाभ लेने वाले लोगों की संख्या में इजाफा हो रहा है।
लोगों को फायदा, लेकिन नहीं है खुद का भवन
छोटीसादड़ी उपखंड मुख्यालय पर स्थित राजकीय आयुर्वेद चिकित्सालय एक और जहां लोगों के लिए उपयोगी साबित हो रहा है वहीं दूसरी ओर मूलभूत सुविधाओं के लिए खुद चिकित्सालय भी मोहताज है। अलग-अलग स्थान पर आयुर्वेदिक औषधालय का संचालन किया जा रहा है। वर्तमान में भवन के अभाव में एक गोदाम में इस चिकित्सालय का संचालन किया जा रहा है, जो नगर के गांधी चौराहे पर स्थित है। इससे पूर्व मुक्ति धाम के पास स्थित राजकीय विद्यालय भवन में संचालन हो रहा था। कोरोना संक्रमण काल के दौरान आयुर्वेद में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका साबित की है। लेकिन बार-बार विभाग से भूमि की मांग होने के बावजूद अब तक सरकार से चिकित्सालय के लिए कोई भवन नहीं मिला है।
नहीं है कोई साइड इफेक्ट, फायदेमंद है उपचार
आयुर्वेदिक औषधालय के प्रभारी डॉ राहुल चंद्र रेगर बताते हैं कि आयुर्वेद पद्धति के माध्यम से बड़ी संख्या में रोगियों का छोटीसादड़ी में उपचार किया जा रहा है। यह भारत की सबसे प्राचीन चिकित्सा पद्धति है और इस चिकित्सा पद्धति का फायदा यह है कि इसमें कोई साइड इफेक्ट नहीं है। ऐसे में दवाइयां के नुकसान से शरीर को होने वाले नुकसान का कोई खतरा इस चिकित्सा पद्धति में नहीं है।
हर मर्ज में फायदेमंद है उपचार, दूर-दूर से आ रहे हैं रोगी
यहां आने वाले रोगियों ने बताया कि शुगर, ब्लड प्रेशर, श्वासकास, वात रोग, चर्म रोग, एसिडिटी सहित कहीं गंभीर बीमारियों के उपचार के लिए लोग यहां पहुंच रहे हैं। न केवल छोटीसादड़ी बल्कि प्रतापगढ़, बांसवाड़ा, डूंगरपुर, चित्तौड़गढ़, भीलवाड़ा, उदयपुर और मध्यप्रदेश के समीपवर्ती जिले नीमच से भी इस चिकित्सालय में उपचार लेने के लिए मरीज पहुंच रहे हैं। और राज्य सरकार द्वारा उपलब्ध दवाइयां के माध्यम से रोगियों को उत्कृष्ट श्रेणी का उपचार उपलब्ध कराया जा रहा है। यहां आने वाले रोगियों से बातचीत करने से सामने आएगी। कहीं ऐसे रोगी है जो शुगर के उपचार के लिए इंसुलिन लेते थे। वही किडनी के उपचार के लिए डायलिसिस जैसी दर्दनाक प्रक्रिया से गुजर रहे थे। उन्हें भी फायदा हुआ है और अब उन्हें जिन्हें शुगर के उपचार के लिए इंसुलिन की जरूरत पड़ती थी उनका इंसुलिन बंद हो गया। तो किडनी फेल्योर के मरीजों के लिए डायलिसिस बंद होने के बाद भी वह सामान्य जीवन जी रहे हैं।
मरीजो के अनुभव-
आयुर्वेद से डायलिसिस से मिला छुटकारा
पचास वर्षीय मरीज के दोनों गुर्दे सिर्फ 10 फीसद तक काम कर रहे थे। वह लगभग किडनी फेल्योर की स्थिति में पहुंचने वाली थे। चित्तौड़गढ़ और उदयपुर अस्पताल में तीन बार डायलिसिस भी करा चुकी थे। मगर उसे राहत नहीं मिल पा रही थी। आयुर्वेदिक उपचार से तीन माह दवा चलने के बाद वह ठीक हो गया। अब वह सामान्य जीवन जी रहे हैं।
उदयलाल धाकड़, भगवानपूरा
इंसुलिन से मिला छुटकारा
कई सालों से शुगर थी। और इंसुलिन लेने पड़ते थे। आयुर्वेद दवाओं से दो महीनों में इंसुलिन से छुटकारा मिल गया। अब मै मीठा भी खा पा रहा हूं। पहले मुझे कई यूनिट इंसुलिन लेते पड़ते थे। अब उससे मुझे निजात मिल गई।
बाबूलाल साहू, छोटीसादड़ी
सांस की बीमारी से मिली निजात
सांस की बीमारी से लंबे समय से पीड़ित था।
उसके बाद किसी ने आयुर्वेद उपचार करने की सलाह दी। चार माह से आयुर्वेद उपचार करवाने के बाद आज में पूरी तरह से स्वस्थ हूं।
रमेश राव मराठा, छोटीसादड़ी
पांच सालों से छींको की एलर्जी से थी परेशान
मुझे करीब पांच सालों से छींको की एलर्जी से परेशानी थी। बार-बार अंग्रेजी गोलियां लेनी पड़ती थी। पंखे की हवा में बैठने पर भी छींके आती थी। फिर आयुर्वेदिक दवाओं का सेवन करने के बाद में ठीक हो गई।
अनिता सेन, छोटीसादड़ी
चार सालों बाद हुआ बच्चा
करीब चार वर्षों से बच्चे नही हो रहे थे। कही जगह पर उपचार भी करवाया लेकिन कोई फायदा नहीं मिला। उसके बाद छोटीसादड़ी औषद्यालय में दिखाया। आयुर्वेदिक उपचार शुरू करने के तीन महीने बाद रिपोर्ट पॉजिटिव आई। अभी हाल ही में एक पुत्र हुआ है।
भरत कन्या बाई मीणा, जलोदिया केलूखेड़ा