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सीधा सवाल। मंगलवाड़। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का शनिवार को मंगलवाड़ नगर में पराक्रम शताब्दी पथ संचलन 2025 निकला जो आदर्श विद्या निकेतन से शुरू होकर निंबाहेड़ा मार्ग,उदयपुर मार्ग, चित्तौड़गढ़ मार्ग के विभिन्न मार्गों से होते हुए पुनः आदर्श विद्या निकेतन पहुंचा।मार्ग में विभिन्न स्थानों पर समाज की सज्जन शक्ति द्वारा स्वयंसेवकों का भारत माता के जयकारों ओर पुष्पवर्षा के साथ स्वागत किया गया।इस अवसर पर आयोजित बौद्धिक सत्र में संघ के विभाग कार्यवाह दिनेश चंद्र भट्ट का पाथेय प्राप्त हुआ।अपने संबोधन में भट्ट ने कहा कि पथ संचलन से समाज की सज्जन शक्ति का उत्साह बढ़ता है और उनमें सुरक्षा का भाव जागृत होता है जबकि दुर्जनों में भय पैदा होता है।जिस प्रकार सज्जन शक्ति की रक्षा,दुष्टो का विनाश और धर्म की स्थापना एवं संरक्षण जैसे तीन कार्यो के लिए भगवान अवतार लेते हैं।
आज संघ भी इसी कार्य में लगा है क्योंकि संघ कार्य ईश्वरीय कार्य है। कृणवन्तो विश्वमार्यं अर्थात् संसार को श्रेष्ठ बनाने के लक्ष्य को लेकर देश और देश के बाहर स्वयंसेवक कार्य कर रहे हैं। हम सभी का सौभाग्य है हिंदू के रूप में भारत भूमि पर जन्म हुआ एवं संघ के स्वयंसेवक बनने का सुअवसर प्राप्त हुआ। सन् 1925 में विजयादशमी के अवसर पर संघ की स्थापना से लेकर इस वर्ष 2025 में हम संघ के शताब्दी वर्ष में प्रवेश कर चुके हैं। देशभर में संचालित 720000 शाखों एवं 43000 साप्ताहिक मिलन के माध्यम से व्यक्ति निर्माण करते हुए देश धर्म की रक्षा हेतु अपना सर्वस्व समर्पण करने वाले लाखों कार्यकर्ता खड़े हुए है। प्रत्येक स्वयंसेवक हमेशा देश हित का विचार करते हुए भारत माता को परम् वैभव पर ले जाने की आकांक्षा रखता है। देश में जब भी किसी भी प्रकार की आपदा, संकट आया तो स्वयंसेवक हमेशा सेवा कार्य करने में अग्रणी रहे हैं। संघ स्थापना के प्रारंभ में प. पू. डॉ. हेडगेवार के कहने पर कई लोगों ने अपना संपूर्ण जीवन समर्पित किया और विभिन्न समस्याओं एवं कष्टों का सामना करते हुए पूरे देश में संघ कार्य को पहुंचाया। आज भी स्वयंसेवक शरीर के आंतरिक अंगों के समान लगातार बिना किसी यश एवं कीर्ति की कामना किये कार्य कर रहे है।
शताब्दी वर्ष के अवसर पर प्रत्येक गांव में संघ कार्य का विस्तार कर अच्छे ओर गुणवान स्वयंसेवक तैयार करने है।अपने जीवन में पंच परिवर्तन को अपनाकर राष्ट्र धर्म में अपना योगदान देना चाहिए।सामाजिक समरसता की शुरुआत स्वयं और स्वयं के घर से होनी चाहिए।आज भारत विरोधी विमर्श के माध्यम से समाज को बांटने की कोशिश की जा रही है। हमें इसका जवाब सामाजिक समरसता को मजबूत करके देना है ताकि देश में भारत विरोधी,हिंदुत्व विरोधी विमर्श खड़े नहीं हो पाए।इसके लिए देश की सज्जन शक्तियों को एक साथ लाकर कार्य करना है।हमें पर्यावरण संरक्षण के लिए सिंगल यूज प्लास्टिक का उपयोग नहीं करना ,पानी बचाना और पेड़ लगाना जैसे विषयों पर कार्य करना चाहिए ।साथ ही आज की भौतिकतावादी संस्कृति से सनातन संस्कृति को बचाने के लिए कुटुंब प्रबोधन कर संस्कारित पीढ़ी तैयार करनी है।देश के प्रति हमारे कर्तव्यों को अपनाकर नागरिक शिष्टाचार का पालन करना चाहिए।
विभाग कार्यवाह ने कहा की हमारी देशभक्ति की कल्पना 'सकारात्मक' है प्रतिक्रियात्मक नहीं देशभक्ति का अर्थ केवल भूमि से प्यार ही नहीं अपितु
हमारे मन में यहां के जलचर, थलचर,नभचर,प्रकृति,संस्कृति, इतिहास, महापुरुष, कला, विज्ञान आदि सभी से अपनत्व और उनकी रक्षा की तीव्र आकांक्षा है। इस अवसर पर सैकड़ों स्वयंसेवकों ने संचलन में भाग लेते हुए राष्ट्रहित में योगदान देने का संकल्प लिया।
