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सीधा सवाल। बस्सी। मेवाड़ की धरती पर जलझूलनी एकादशी का पर्व सिर्फ धार्मिक आस्था का ही नहीं, बल्कि सदियों पुरानी परंपराओं और लोकजीवन के मेल का प्रतीक है। बस्सी स्थित विश्व प्रसिद्ध ऐतिहासिक कुंड में इस वर्ष भी परंपरा के अनुसार ठाकुर जी के विमान स्नान के बाद विशाल स्नान उत्सव का आयोजन होगा। कुंड में स्नान से पहले राजपरिवार के राव साहब पौराणिक परंपरा के अनुसार पानी में नारियल डालते हैं। जैसे ही नारियल डाला जाता है, भील समाज के लोग सर्वप्रथम पानी में कूदकर नारियल निकालते हैं। पहले नारियल को पाने वाले को विशेष सम्मान और इनाम दिया जाता है। यह दृश्य हर बार लोगों में रोमांच पैदा करता है।
घंटों पहले जुटने लगती है भीड़
ऐतिहासिक कुंड के चारों ओर हजारों की संख्या में श्रद्धालु और दर्शक स्टेडियम जैसे माहौल में इकट्ठे हो जाते हैं। लोग चार घंटे पहले से ही अपनी जगह घेरकर बैठ जाते हैं ताकि इस अद्भुत नजारे को देख सकें। सैकड़ों युवक एक साथ पानी में छलांग लगाकर “घंटे” लगाने की परंपरा का पालन करते हैं। बस्सी के इस कुंड में वर्षभर स्नान वर्जित रहता है। केवल जलझूलनी एकादशी के दिन ही यहां स्नान की अनुमति होती है। यही वजह है कि इस दिन का लोगों को बेसब्री से इंतजार रहता है। युवाओं और बच्चों के लिए यह दिन खास आकर्षण का केंद्र होता है।
कठिन समय में भी नहीं टूटी परंपरा
पूर्व में दो बार ऐसा अवसर आया जब अनावृष्टि के कारण कुंड पूरी तरह खाली हो गया था। उस समय पास के तालाब से इंजन लगाकर पाइपों के जरिए कुंड को भरा गया। इसके बावजूद परंपरा को टूटने नहीं दिया गया और उसी विधि-विधान से स्नान आयोजन हुआ। इससे इस उत्सव के महत्व और लोगों की आस्था का अंदाजा लगाया जा सकता है। जानकारों के अनुसार, जब देवगढ़ से बस्सी में राजघराना स्थापित हुआ, तभी से यह परंपरा शुरू हुई थी। पीढ़ी दर पीढ़ी यह उत्सव उसी उत्साह और श्रद्धा से मनाया जा रहा है। इस बार यह स्नान उत्सव 3 सितम्बर की शाम 4 बजे से प्रारंभ होगा। आयोजन को लेकर लोगों में विशेष उत्साह है और तैयारियां पूरी कर ली गई हैं।