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सीधा सवाल। बिनोता। कृषि विभाग चित्तौड़गढ़ में गुरुवार आयोजित मासिक बैठक के दौरान इफको द्वारा नैनो उर्वरक उपयोग कार्यशाला का आयोजन किया गया। इस कार्यशाला का उद्देश्य कृषि पर्यवेक्षकों को नैनो उर्वरकों के उपयोग, लाभ एवं तकनीकी पहलुओं की जानकारी प्रदान करना था।
कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में दिनेश कुमार जागा, संयुक्त निदेशक कृषि विस्तार चित्तौड़गढ़ उपस्थित रहे। विशेष अतिथि के रूप में डॉ. ए. पी. सिंह, वरिष्ठ प्रबंधक, इफको जयपुर, डॉ. शंकर लाल जाट, उपनिदेशक उद्यान विभाग, डॉ. पी.सी. वर्मा, उपनिदेशक आत्मा, रमेश आमेटा, सहायक निदेशक कृषि विस्तार, अंशु चौधरी, ADA कृषि प्रसार, ज्योति प्रकाश सिरोहा, AD, हरीश टांक, गोपाल शर्मा, गोपाल धाकड़, शिवांगी जोशी (कृषि अधिकारी), सहायक कृषि अधिकारी, मुकेश कुमार आमेटा, उप क्षेत्रीय प्रबंधक, इफको चित्तौड़गढ़, मदन गोपाल जाट, इफको नैनो वेन्सन चित्तौड़गढ़ सहित 120 कृषि पर्यवेक्षक एवं SFA गोविन्द सुखवाल उपस्थित रहे।
कार्यशाला के दौरान डॉ. ए.पी. सिंह ने उपस्थित कृषि अधिकारियों एवं कर्मचारियों को नैनो उर्वरकों की तकनीक, उनके उपयोग के लाभ, पारंपरिक रासायनिक उर्वरकों से उनके अंतर तथा देश-विदेश में नैनो उर्वरकों के परिणामों की जानकारी दी। उन्होंने बताया कि नैनो उर्वरक आधुनिक तकनीक पर आधारित हैं जो पौधों को पोषक तत्वों की अधिक कुशल आपूर्ति करते हैं। उन्होंने पारंपरिक यूरिया और डीएपी के साथ नैनो उर्वरकों को टैगिंग न करने की सलाह दी और किसानों को इसके सही उपयोग की जानकारी प्रदान करने पर जोर दिया।
दिनेश कुमार जागा ने अपने संबोधन में कृषि अधिकारियों और पर्यवेक्षकों से नैनो उर्वरकों के प्रचार-प्रसार पर विशेष ध्यान देने का आग्रह किया। उन्होंने कहा कि नैनो उर्वरक न केवल पर्यावरण संरक्षण में सहायक हैं बल्कि मिट्टी की उर्वरता को भी बनाए रखते हैं। उन्होंने सभी अधिकारियों को “पी.एम. प्रणाम योजना” के अंतर्गत धरती माँ को रसायन मुक्त करने के लिए जैव एवं नैनो उर्वरकों के उपयोग को बढ़ावा देने और रासायनिक उर्वरकों पर निर्भरता कम करने की प्रतिज्ञा दिलाई।
डॉ. प्रेमचंद वर्मा, सहायक निदेशक आत्मा ने नैनो डीएपी से बीज उपचार और नैनो यूरिया के छिड़काव की विधि पर विस्तार से जानकारी दी और बताया कि इससे फसलों की उत्पादकता बढ़ाने में मदद मिलती है।
इफको चित्तौड़गढ़ से मुकेश कुमार आमेटा ने नैनो यूरिया, नैनो डीएपी, नैनो जिंक और नैनो कॉपर के उपयोग की विधि और लाभों का विस्तार से वर्णन किया। उन्होंने पारंपरिक रासायनिक उर्वरकों के दुष्प्रभावों की तुलना में नैनो उर्वरकों के पर्यावरणीय लाभों पर भी प्रकाश डाला। साथ ही “संकट हरण बीमा योजना” के बारे में भी विस्तृत जानकारी दी गई।
कार्यशाला के अंत में उपस्थित सभी अधिकारियों ने नैनो उर्वरकों, जैव उर्वरकों, टिकाऊ खेती, के उपयोग और किसानों के बीच इसके व्यापक प्रचार-प्रसार हेतु संकल्प लिया।